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ऐसा भ्रष्टाचार और कहां पार्ट 01 -मटेरियल के टेंडर दिखाने को और काम होते हैं खाने को ।

फारेस्ट में हो जाता है पचास लाख का सिविल वर्क भी बिना टेंडर और इंजिनियर के ।

रेंजर ना हुआ सुपरमैन हो गया वही इंजिनियर , सब इंजिनियर और आर्किटैक्ट भी ।

अपने ही बनाए जाल में उलझे रेंजर विजय साहू ।

 

दबंग न्यूज लाईव
गुरूवार 11.06.2020

करगीरोड कोटा – वन विभाग में पचास लाख तक के बड़े और सिविल वर्क बिना इंजिनियर,सब इंजिनियर और आर्किटैक्ट के ही हो जाते हैं और इतने बड़े सिविल वर्क को विभाग का वो रेंजर पूरा करा देता है जिसने शायद कभी अपने घर में नाली तक खुद ना बनवाई हो । है ना मजे की बात ? रेंजर ना हुआ मानो सुपरमैन हो गया । लेकिन हकीकत ये है कि विभाग के इतने बड़े कामों को कागज में तो विभाग द्वारा बनाया जाना दिखाया जाता है लेकिन असल में यहां जमकर ठेकेदारी चलती है जिसकी सेटिंग है वो यहां मस्त मलाई छानता है ।


फारेस्ट को विभाग के ही लोग चरने में लगे हैं और सभी मजे से चर रहे है , साथ में वो ठेकेदार भी मलाई खा रहे हैं जो काम कर रहे है । रिकार्ड में सब काम एकदम दुरूस्त है कोई ठेकेदारी प्रथा नहीं सब काम विभाग करवा रहा है । लाखों रूपए के सिविल वर्क में ना इंजिनियर ना सब इंजिनियर ना आर्किटेक्ट ना कोई विशेषज्ञ । सब काम वन विभाग के रेंजर और डिप्टी रेंजर करा लेते हैं । हो सकता है फारेस्ट ट्रेनिंग के दौरान सिविल इंजिनियरिंग की पढ़ाई करवा दी जाती होगी । और यदि नहीं करवाई गई तो समझा जा सकता है कि इतने बड़े बड़े सिविल वर्क अप्रशिक्षित लोगों के भरोसे छोड़ दिए जाते हैं ऐसे में सारे कामो की गुणवत्ता कैसी होती होगी समझा जा सकता है ।


जंगल के अंदर जो मंगल चल रहा है उसकी खबर बाहर तक आ नहीं पाती क्योंकि यहां तीन प्रकार के लोग होते हैं पहले गांव के भोले भाले मजदूर , दुसरा होशियार ठेकेदार जिसकी नजर आधी मलाई पर रहती है और तीसरा उससे भी होशियार अधिकारी जिसकी नजर पूरी मलाई पर रहती है ।


बेलगहना परिक्षेत्र के छुहीया के कहुआ नाले में पचास लाख रूपए से स्टाप डेम विभाग बना रहा है । यहां तक पहुंचना ही भारी मशक्कत का काम है । ऐसे जंगल में ठेकेदार कैसा काम करता होगा इसकी परवाह विभाग को नहीं है और ठेकेदार को इसलिए नहीं है कि वो कहीं फंसने वाला नहीं है कुछ होगा तो विभाग समझे क्योंकि आन रिकार्ड काम तो विभाग करवा रहा है । यहां काम ऐसा ठेकेदार कर रहा है जिसने इसी क्षेत्र में चांटापारा में पेटी कांट्रेक्ट लेकर 7 करोड़ का स्टापडेम बनाया था जो एक बरसात में बह गया था और इसी प्रकरण में सिंचाई विभाग के कई इंजिनियर एसडीओ निपट गए थे ।


कहुआ नाले में बन रहा पचास लाख के स्टाप डेम की कई कहानी है । दबंग न्यूज लाईव की टीम जब यहां पहुंची तो यहां युद्ध स्तर पर काम चल रहा था । हर तरफ पोकलैण्ड जेसीबी मिक्सर मशीन ठेकेदार के आदमी और काम करते मजदूर थे ।


हमारे पहुंचने पर वहां के सुपरवाईजर ने बताया कि काम ठेकेदार करवा रहा है लेकिन जैसे ही कैमरे को देखा रट्टू तोते के टाईप बोलने लगा काम तो विभाग करवा रहा है , रेंजर विजय साहू और डिप्टी रेंजर जोशी करवा रहे हैं फिर ये कैसेट अंत तक बजते रहा । विभागीय काम हो रहा था लेकिन विभाग के रेंजर डिप्टी रेंजर , फारेस्टर , फारेस्ट गार्ड तो छोडिए विभाग का पैदल गार्ड तक यहां नहीं था ।


नाबालिक बच्चों से करवाया जा रहा काम – जंगल के अंदर चल रहे इस पचास लाख के काम को विभागीय बताया जा रहा है ऐसे में यहां के अधिकारियों को ये देखने की फुरसत नहीं है कि यहां नाबालिक बच्चे काम कर रहे हैं । यहां काम करने वाले आधे से ज्यादा मजदूर नाबालिक है जो सातबी और आठवीं के छात्र है जिनकी उम्र तेरह से लेकर पंद्रह साल की है । फारेस्ट के जिम्मेदार लोगों को शायद ये नही पता कि बच्चों से ऐसी मजदूरी कराना कानूनी अपराध है ।

ठेकेदार के सुपरवाईजर ने भी एक सिरे से इसे नकार दिया कि यहां कोई नाबालिक काम कर रहा है और रेंजर का तो ये कहना था कि ये अपने मां बाप के साथ आ जाते हैं और ऐसे ही काम करते रहते हैं । जबकि  सच्चाई ये हेै कि ये सभी नाबालिक बच्चे पिछले दो माह से यहां काम कर रहे हैं । मिक्सर मशीन चला रहे , मसाला बना रहे , रेत गिट्टी और पानी ढो रहे और इसके लिए उन्हें दो सौ रूपए प्रतिदिन की मजदूरी मिलती है ।

इस पूरे भ्रष्टाचार की कहानी का अगला हिस्सा आप पार्ट 02 में पढ़िएगा ।

 

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