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ज्वलंत मुद्दा -गांव गांव में क्वारंटाईन सेंटर बनाना कहीं गलती तो नहीं ?

विकासखंड स्तर पर होने थे सेंटर जिससे ज्यादा अच्छी व्यवस्था और सुविधाएं होती मुहैया ।

दबंग न्यूज लाईव
गुरूवार 21.05.2020

 

Sanjeev Shukla

बिलासपुर – प्रवासी मजदूरों के आने का सिलसिला अचानक से प्रदेश में बढ़ गया है इसके साथ ही गांव गांव में बनाए गए क्वारंटाईन सेंटरों की बदहाली की खबरें भी आने लगी है । इतनी भारी संख्या में क्वारंटाईन सेंटर बनने के बाद अधिकारी भी इनकी तरफ से उदासीन हो गए हैं कि इतने सेंटरों की व्यवस्था कैसे की जाए ? यदि यही सेंटर ब्लाक स्तर पर किए जाते तो अधिकारियों के साथ ही बाहर से आए लोगों को भी ज्यादा सुविधा होती लेकिन हर विकाखंड में सौ से उपर सेंटर बना दिए गए । सेंटर भी गांव के स्कूलों में जहां ना पानी की व्यवस्था होती है ना बिजली की । उसी गांव के लोग उसी गांव में क्या चोैदह दिन क्वारंटाईन रहेंगे असंभव । और क्या अधिकारी इतने सेंटरों का नीरिक्षण कर पाएंगे और यहां व्यवस्था करवा पाएंगे ये तो और भी असंभव ।


गांव गांव में बने दो दो कमरों के क्वारंटाईन सेंटरों से अब कोरोना पाजिटिव्ह के केस सामने आने लगे है पिछले दो तीन दिनों में प्रदेश में इनकी संख्या में तेजी से ईजाफा हुआ है । प्रदेश में जहां एक टाईम में अधिकतम दस या ग्यारह एक्टिव केस होते थे अब वहां पचास से उपर केस हो गए ।


बालोद , बलौदा , जांजगीर ,मुंगेली ,बिलासपुर सभी जगहों से प्रवासी मजदूरों में ये पाया जा रहा है । सबसे गंभीर बात ये कि ये सभी जिले और विकासखंड मुख्यालय को पार करके ये अपने गांव पहुंच गए हैं और अब गांव खतरे में आ गये है ।


ऐसा नहीं है कि विकासखंड स्तर पर प्रशासन के पास व्यवस्था नहीं है । हर विकासखंड मुख्यालय में दस से बारह ऐसी बड़ी बिल्डिंग होती है जहां इनकी व्यवस्था हो जाए । कस्तुरबा विद्यालय , आश्रम , छात्रावास , स्कूल की डबल स्टोरी बिल्डिंग जो अधिकतर खाली पड़ी है जहां कमरे , लाईट , पानी , शौचालय सबकी व्यवस्था होती है । और फिर यदि ये सेन्टर दस से बारह जगहों पर होते तो अधिकारी भी इसकी अच्छे से मानिटरिंग कर लेते । लेकिन अपनी बला टालने के लिए अधिकारियों ने पूरी बला पंचायतों पर डाल दी ।


पंचायत में क्या है दो चार कमरों के प्राथमिक और माध्यमिक शाला जहां कई में बिजली नही तो कई में पानी नही । जहां एक दो शौचालय ही है । और यहां रोक दिया गया बीस से तीस और चालिस लोगों को एक साथ । एक कमरे में दस से बीस लोग फिर सोशल डिस्टेंसिग कहां गई ?

पंचायतों के पास क्या इतना फंड है जो पंद्रह दिनों तक इनकी व्यवस्था कर पाए ? फिर अपने ही गांव में क्वारंटाईन किए गए लोग अपने पंचायत के सरपंच से ज्यादा मांग करने लगे हैं ? सरपंच परेशान हैं कि क्या किया जाए इन्हीं लोगों ने तो व्होट देकर बनाया है अब व्यवस्था ना करूं तो भी मुश्किल ।


समय तेजी से भाग रहा है हर मिनट कोरोना के संक्रमण का खतरा बढ़ रहा है । लेकिन लोग अभी भी गंभीर नहीं हुए हैं । कई सौ किमी दूर रहने वाला करोना आपके पड़ोस में आ चुका है । लेकिन अभी भी समय है सरकार गांव गांव के अव्यवस्थित क्वांरटाईन सेंटर को बंद करें और ब्लाक मुख्यालय की बड़ी बिल्डिंगों को सेंटर बनाए जिससे निगरानी मूल्यात्मक हो सके वर्ना गांव गांव में स्थिति संभालना कठिन हो जाएगा । गांव गांव के मत्थे क्वांरटाईन सेंटर बनाना कमोबेश वहीं स्थिति हो गई है जैसी गांव के पीएचसी अपने मरीज को जिला अस्पताल रिफर करके अपना पल्ला झाड़ लेते हैं । यहां उल्टा हो गया है यहां बड़ी जगह से छोटी जगह रिफर कर दिया गया है ।

 

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