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सह ? अस्तित्व ?

मानव और प्रकृति के सहअस्तित्व पर ये आलेख है साजा एसडीएम डा. आशुतोष चतुर्वेदी का । डा. आशुतोष चतुर्वेदी युवा अधिकारी हैं और पर्यावरण , प्रकृति से उनका विशेष लगाव रहा है । ये जहां भी रहे है प्रकृति और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए कार्य करते रहे हैं । डा आशुतोष चतुर्वेदी का ये आलेख मानव प्रजाती के अस्तित्व को दिखाती है , और आने वाले समय में अपने सरंक्षण पर भी बल दे रही है । दबंग न्यूज लाईव डा आशुतोष चतुर्वेदी का आभार व्यक्त करती है कि उन्होंने अपना आलेख को हमें प्रकाशित करने की अनुमति प्रदान की ।

दबंग न्यूज लाईव
सोमवार 09.03.2020

हम मानव खुद को सर्वाधिक बुद्धिमान प्राणी  (most intelligent animal  कह कर ही संतुष्टि पाते हैं। फिर भी यह तथ्य कि, किसी भी प्राणी की उत्तरजीविता के लिए उसके परिस्थितिक तंत्र और पर्यावरण का स्वास्थ्य आवश्यक है समझने में हम सर्वाधिक बुद्धिमान प्राणियों को आज तक का मानव इतिहास लग गया।

इस दिशा में जिस गति से फिलहाल अमल हो रहा है, उसकी गति नहीं बढ़ी तो शायद हमसे सर्वाधिक बुद्धिमान प्राणियों का तमगा और हमारे उत्तरजीविता का अधिकार प्रकृति हमसे स्वयं छीन लेगी। और ये तमगा बची हुई प्रजातियों में से किसी एक के पास होगा जिसे देखने हमारी प्रजाति में से कोई शायद ही बचा होगा। बेशक हमारे बाद बचे उन प्राणियों में बुद्धिमत्ता हमसे कमतर होगी पर प्रकृति और अन्य प्रजातियों के साथ सहअस्तित्व की भावना हमसे ज्यादा होगी।

 

हमारी अपनी प्रजाति (मानवों) में ही विकास, सत्ता, राजनीति, अर्थ, बल और आधुनिकता की अंधी दौड़ को लेकर न जाने किस-किस स्तर पर संघर्ष और कितनी ही प्रतियोगितायें हमारे ही बीच चल रही हैं। हमारी सभी प्राथमिकताओं में सबसे पहले हम ही होते हैं और बाकी हमारे बाद। प्रकृति और पर्यावरण तो प्राथमिकताओं में से एक न होकर प्राथमिकता पूर्ति के आगत हैं, साध्य न होकर महज हमारे आवश्यकताओं की पूर्ति के साधन हैं। जबकि असल में ये एक होने का समय हैय सहअस्तित्व के महत्व को समझने का समय है।

हमारी अमिट मानवीय तृष्णा और भूख का ख़ामियाजा अंततः पर्यावरण, पृथ्वी और इसके दूसरे निरीह जीवों (प्रजातियों) को चुकाना पड़ता है। उपलब्ध संसाधनों का ऐसा अंधा दोहन बार-बार हमारे और हमारे पर्यावरण के सामने उत्तरजीविता का प्रश्न खड़ा कर रहा है। हमारी सभ्यता को चुनौती देने वाले ये सारे प्रश्न भेष बदलकर हमारे सामने ही खड़े हैं। बस जरूरत है, तो उन्हें पहचानने की और समय रहते उनके समाधान की दिशा में क़दम बढ़ाने की।

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