कोरबा

सीपीआई ने कहा- संस्थाओं द्वारा दी जा रही राहत सामग्री वितरण से पुलिस को परेशानी क्यों

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कोरबा {गेंदलाल शुक्ल} । कोरोना संकट के मद्देनजर आर्थिक रूप से बदहाल लोगों के बीच किसी भी संस्था और व्यक्ति द्वारा राहत सामग्री वितरण पर रोक लगाने के आईजी दीपांशु काबरा के आदेश को मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने अव्यावहारिक बताया है और इसे वापस लेने की मांग की है।

माकपा राज्य सचिव मंडल ने कहा कि प्रदेश के लोग कोरोना संक्रमण से कम, अनियोजित लॉकडाऊन के कारण ज्यादा परेशान है। प्रदेश के 90% परिवारों की मासिक आय 10000 रुपए से कम है और आजीविका खत्म होने के कारण भुखमरी के कगार पर खड़े हैं। ऐसे में यह आदेश आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को भूखे मरने के लिए मजबूर कर देगा।

केंद्र सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे का हवाला देते हुए माकपा राज्य सचिव संजय पराते ने कहा है कि पूरे देश में जो राहत शिविर चल रहे हैं, उसका केवल 1.58% ही प्रदेश में है और उनमें भी केवल 1.31% लोगों को ही शरण मिला हुआ है। इसी तरह प्रदेश में जो सरकारी भोजन शिविर चल रहे हैं, उसमें केवल 80923 लोगों को ही भोजन वितरित किया जाता है, जो पूरे देश में सरकारी भोजन से लाभान्वितों का मात्र 1.49% ही है। सरकारी राहत की तुलना में एनजीओ व अन्य संस्थाएं सेवाभावी व्यक्तियों के साथ मिलकर बेहतर राहत कार्य कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि वैसे भी सरकार ने दो माह के मुफ्त राशन देने के अलावा कमजोर वर्ग के लोगों की मदद के लिए कोई राहत पैकेज नहीं दिया है। इसके कारण लोग अपनी दैनिक जरूरतों दूध, सब्जी, तेल व फल आदि के लिए अन्य लोगों व संस्थाओं द्वारा वितरित किए जा रहे राहत सामग्रियों ही निर्भर है और ऐसे लोगों की संख्या लाखों में हैं, लेकिन सरकारी सहायता की पहुंच इसके एक छोटे हिस्से तक ही है।

पुलिस के जरिए राहत सामग्री वितरण के आदेश को अव्यवहारिक बताते हुए पराते ने कहा कि जनसेवी संस्थाओं में काम करने वाले लोग अच्छी तरह जानते हैं कि इन राहत सामग्रियों की सबसे ज्यादा और वास्तविक जरूरत किन लोगों को है। माकपा ने प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू से भी ऐसे अव्यवहारिक आदेश पर रोक लगाने की अपील की है।

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