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Dadagiri of higher education department – नेक ग्रेडेशन में यदि फिसड्डी साबित होने पर कड़ी कार्यवाही का डर ।

तो साहब ये भी बता दो यदि ग्रेड अच्छा आया तो अवार्ड दोगे ?
महाविद्यालय में सुविधाएं तो धेले भर की नहीं लेकिन नेक में ग्रेड आना चाहिए ।

दबंग न्यूज लाईव
शनिवार 20.11.2021

रायपुर – महाविद्यालयों के स्तर को मापने का एक पैमाना है नेक NAAC का मूल्यांकन और इसमें अच्छे ग्रेड आने के लिए महाविद्यालय साल भर मेहनत करते रहते हैं । नेक के मूल्यांकन में महाविद्यालय की शिक्षा का स्तर , वहां की सुविधा , वहां का माहौल और स्टॉफ के समन्वय का भी ध्यान रखा जाता है इसके अलावा और भी बहुत सी जानकारी ली जाती है उसके बाद ग्रेडेशन किया जाता है । और इसके बाद नेक ग्रेडेड महाविद्यालय को केन्द्र सरकार से अनुदान प्राप्त होता है ।


यहां तक तो सब ठीक है । ग्रेडेशन और मूल्यांकन होना भी चाहिए और यह भी पता लगाना चाहिए कि प्रदेश के महाविद्यालयों का स्तर क्या है और कैसा है । और नेक होने के बाद सरकार को उन सभी महाविद्यायल में जो ग्रेडेशन में फिसड्डी साबित हुए हैं वहां वे सभी सुविधाएं उपलब्ध करवानी चाहिए जो उसे नेक के मूल्यांकन में फिसड्डी साबित किए हो ताकि अगली बार ये महाविद्यालय भी नेक के मूल्यांकन करवाते समय आत्मविश्वास से भरे हों ।


लेकिन हमारे यहां हो उल्टा रहा है । इन दिनों सोशल मीडिया में एक वायरल हो रहा है जिसमें उच्च शिक्षा विभाग Higher Education  ने बिलासपुर के एक ए ग्रेड कालेज का मॉक विजिट करवाया गया । अच्छा होता ये लेटर उच्च शिक्षा विभाग उसी महाविद्यालय को भेजता लेकिन ये लेटर सोशल मीडिया में वायरल हो गया ।

लेटर को यदि पढ़ें तो समझ आता है कि उच्च शिक्षा विभाग की कैसी दादागिरी नेक मूल्यांकन को लेकर चल रही है । विभाग ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि नेक मूल्यांकन में पूर्व में ए ग्रेड से निम्नतर मूल्यांकन ग्रेड प्राप्त होता है तो महाविद्यालय के प्राचार्य शैक्षणिक एवं अशैक्षणिक स्टाफ पर कड़ी अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाएगी ।

इस तरह का आदेश देने के पहले उच्च शिक्षा विभाग के आयुक्त को यह भी ध्यान में रख लेना चाहिए कि उनके विभाग के महाविद्यालय किस हालत में है ? वहां के स्टाफ किस हालत में हैं ? और शैक्षणिक और अशैक्षणिक स्टाफ पूरे हैं भी या नहीं ? क्या शैक्षणिक स्टाफ से विभाग बाबूगिरी नहीं करवा रहा । यदि नेक के मूल्यांकन के बाद निम्नतर ग्रेड वाले महाविद्यायल पर कार्यवाही होती है तो उसके पहले उच्च शिक्षा विभाग में उच्च पदों पर बैठे अधिकारी जिनकी जिम्मेदारी महाविद्यालय में सुविधा मुहैया करवाने की है उन पर कार्यवाही नहीं होनी चाहिए ।

उच्च शिक्षा विभाग से जारी से जारी इस पत्र को पढ़ने से ये कहीं से भी नहीं लगता कि ये सरकारी पत्र है क्योंकि इसकी भाषा में कई झोल नजर आते हैं । अंदरूनी सूत्रों से ये भी पता चला है कि मॉक टीम के एक सदस्य का महाविद्यालय के प्राचार्य से पुरानी खुन्नस भी है जिसके कारण उन्होंने महाविद्यालय को निम्न स्तर का बतलाते हुए इस तरह का पत्र जारी करवाया है । ये भी सवाल उठता है कि क्या ये पत्र सिर्फ इसी महाविद्यालय के लिए हैं या सभी इसी के दायरे में आएंगे क्योंकि शहर में ही कई महाविद्यालय हैं जो निम्न ग्रेड के हैं ।

उच्च शिक्षा विभाग को प्रदेश की उच्च शिक्षा के बेहतरी के लिए सामंजस्य से कार्य करना चाहिए लेकिन जिस प्रकार की तानाशाही उच्च शिक्षा विभाग द्वारा की जा रही है वो महाविद्यालयों का मनोबल तोड़ने वाला साबित हो सकता है ।

प्रदेश की उच्च शिक्षा के सामने सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि क्या सरकार महाविद्यालयों में सुविधा विस्तार के पर्याप्त कार्य कर रही है ? क्या सभी महाविद्यालयों को उचित अनुदान दिया जा रहा है ? या अलग अलग महाविद्यालयों को मुंह देखकर अनुदान दिया जा रहा है ? क्या महाविद्यालयों में छात्र संख्या के आधार पर शैक्षणिक और अशैक्षणिक स्टाफ की व्यवस्था है ? पहले उच्च शिक्षा विभाग और मंत्रालय अपना भी एक नेक करवा लें तो बेहतर होगा हो सकता है इससे प्रदेश की उच्च शिक्षा का स्तर बेहतर हो जाए ।

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