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Dadagiri of private college – प्रायवेट कॉलेज की दादागिरी , प्राचार्य को एक तरफा किया निष्काषित ।

शिक्षा के गिरते स्तर के लिए क्या ऐसे कॉलेज जिम्मेदार नहीं ।
विश्वविद्यालय को चाहिए प्रायवेट कॉलेजों पर रखे नजर और करवाए नियमों का पालन ।

दबंग न्यूज लाईव
शनिवार 02.07.2022

बिलासपुर – प्रदेश में उच्च शिक्षा का हाल बेहाल है ना यहां कोई नियम है और ना ही जो नियम है उसे मनवाने और देखने के लिए जिम्मेदार अधिकारी सचेत रहते हैं ऐसे में नीजि महाविद्यालय अपनी मनमानी करने लगते हैं । कई बार ये मनमानी ऐसी हो जाती है कि सारे नियम और कायदे कानून धरे के धरे रह जाते हैं । और इस मनमानी में कॉलेज में अपना भविष्य बनाने के लिए आने वाले छात्रों का अहित होते रहता है ।

ऐसा ही एक मामला जांजगीर चांपा जिले से सामने आ रहा है । इस जिले में सलनी में कालिन्द्रि महाविद्यालय के नाम से एक निजी महाविद्यालय है जो इन दिनांे महाविद्यालय समिति और यहां के प्राचार्य के विवाद को लेकर चर्चा का विषय बना हुआ है । जानकारी के अनुसार इस महाविद्यालय में कि इतनी शिकायतें विश्वविद्यालय के पास आ गई हैं कि यदि विश्वविद्यालय इसे गंभीतरता से ले  और जांच समिति बनाकर जांच करवा ले तो शायद ये महाविद्यालय की बंद हो जाए या विद्यार्थी ही यहां प्रवेश लेना छोड़ दें ।


ताजा घटनाक्रम की बात करें तो वर्तमान में इस महाविद्यालय में ना तो शिक्षक हैं और ना ही प्राचार्य । कालेज प्रबंधन ने अपने यहां के सारे तदर्थ अध्यापकों को निकाल दिया है साथ ही यहां के प्राचार्य को भी निष्काषित कर दिया है । ऐसे में सवाल ये उठता है कि जब यहां ना तो प्राचार्य है और ना ही शिक्षक तो फिर प्रवेश की प्रक्रिया कैसे होगी और आने वाले सत्र में बच्चों का भविष्य कैसा होगा ।
कालेज प्रबंधन ने अपने यहां 2018 में प्राचार्य के रूप में मनोज झा की नियुक्ति यूजीसी के नियमों के अनुसार की । नियुक्ति विज्ञापन और आदेश में प्राचार्य के वेतन को यूजीसी के नियमों के आधार पर देना कहा गया था लेकिन बाद में कालेज प्रबंधन ने प्राचार्य को वेतन के तोैर पर पचपन हजार रूपए देना शुरू कर दिया । प्राचार्य के रूप में पदस्थ मनोज झा ने भी कॉलेज प्रबंधन के इस फैसले को मानते हुए कार्य शुरू कर दिया लेकिन बीच में कॉलेज ने उनके वेतन को पच्चीस हजार और बाद में पंद्रह हजार छह सौ रूपए कर दिया । प्राचार्य मनोज झा ने इस बात की शिकायत विश्वविद्यालय से की लेकिन विश्वविद्यालय ने इस पर कोई एक्शन नहीं लिया ।

इससे भी गंभीर मामला इस कॉलेज से ये सामने आया है कि कालेज प्रबंधन ने नियमों के विरूद्ध बच्चों की उत्तर पुस्तिका तदर्थ शिक्षकों से जांच करवाई और विश्वविद्यालय में जमा करवा दिया । इस समय यहां के प्राचार्य मनोज झा छुट्टी में थे । उन्हें जब इस बात की जानकारी हुई तो उन्होंने इसकी शिकायत विश्वविद्यालय से की । तब आनन फानन में यहां के प्रबंधन ने फिर से उत्तर पुस्तिका को शासकीय महाविद्यालय के प्राध्यापकों से जांच करवाया । याने एक ही उत्तर पुस्तिका की जांच पहले तदर्थ अध्यापकों ने किया फिर शासकीय महाविद्यालय के प्राध्यापकों ने ।

इस संबंध में नंदकुमार पटेल यूनिवर्सीटी के रजिस्ट्रार से बात की गई तो उनका कहना था – कालिन्दि महाविद्यालय के प्रबंध समिति और प्राचार्य के बीच काफी समय से विवाद चले आ रहा है हमने कई बार यहां की स्थिति सुधारने की कोशिश की लेकिन हल नहीं निकला । प्राचार्य के निष्काषन से संबंधित जानकारी हमें नहीं है यदि प्रबंधन समिति ने कालेज के प्राचार्य का निष्काशन किया है तो ये गलत है । प्रबंध समिति को ये अधिकार ही नहीं है कि वो प्राचार्य का निष्काशन कर सके ।

इस पूरे मामले में कालेज के प्राचार्य डा मनोज झा ने दबंग न्यूज लाईव से बात करते हुए कहा कि – मैने इस कालेज में जनवरी 2018 को ज्वाईन किया था उसके बाद से ही कालेज में मैने अनियमितताओं को ठीक करना शुरू कर दिया था । लेकिन प्रबंध समिति ने कभी भी सहयोग नहीं किया । यहां तक मुझे वेतन के रूप में जो पचपन हजार रूपए देने थे उसमें भी कटौति शुरू कर दी गई और हद तो ये हो गई कि बाद में मेरा वेतन पंद्रह हजार छह सौ रूपए कर दिया गया । इसकी शिकायत मैने प्रबंध समिति के साथ ही विश्वविद्यालय से भी की । इसके अलावा 2021-22 की मुख्य उत्तर पुस्तिका भी यहां से गायब हो गई थी बाद में समिति के अध्यक्ष ने सारे उत्तर पुस्तिका विश्वविद्यालय में जाकर जमा करवाये ।

प्राचार्य ने आगे बताया कि इसके अलावा भी यहां कई अनियमितताए थी जिसकी शिकायत विश्वविद्यालय से होते रही । वर्तमान में तो प्रबंध समिति ने यहां के सात तदर्थ प्राध्यापकों की सेवा समाप्त कर दी है और मेरा भी निष्काषन कर दिया है जबकि प्रबंध समिति के पास ये अधिकार ही नहीं है ।

कालेज प्रबंधन समिति के अध्यक्ष आशुतोष चंद्रा का इस पूरे मामले में कहना था – प्राचार्य ने जितने भी आरोप लगाए हैं वो बेबुनियाद है सारी कार्यवाही नियमानुसार ही हुई है । समिति ने पहले प्राचार्य को तीन बार नोटिस दिया लेकिन उनके जवाब से प्रबंधन समिति संतुष्ट नहीं हुई इसलिए निष्काशन की अनुशंषा की गई है । ये सहीं है कि निष्काशन करने का अधिकार विश्वविद्यालय को है लेकिन समिति के अपने भी अधिकार है और उस अधिकार के तहत ही कार्यवाही हुई है । और जो आरोप उत्तर पुस्तिका को लेकर लगाया जा रहा है वह भी गलत है उस समय प्राचार्य अनुपस्थित थे इसलिए वो काम समिति को करना पड़ा ।

बहरहाल प्राचार्य और प्रबंध समिति के इन विवादों के जाल में यहां पढ़ने वाले सैकड़ों बच्चों का भविष्य जरूर दावं पर लग गया है । विश्वविद्यालय प्रबंधन को चाहिए कि इस विवाद का जल्द से जल्द समाधान करते हुए महाविद्यालय में बेहतर शिक्षा व्यवस्था का माहौल निर्मित करे ।

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