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jagjit singh – चिटठी ना कोई संदेश ना जाने कौन से देश जहां तुम चले गए ।

10 अक्टूबर का वह दिन जब जगजीत सिंह जी हमें छोड़ गए ।

दबंग न्यूज लाईव
रविवार 10.10.2021

Sanjeev Shukla

जगजीत सिंह jagjit singh एक ऐसे गजल गायक जिन्होंने गजलों को आम सुनने वालों तक पहुंचा दिया और ऐसा पहुंचाया कि चाय की टपरी से लेकर उंचे घरानों तक उनकी गजलों को सुनने चाहने वाले मौजूद हैं ।


दस अक्टुबर 2011 शायद किसी ने सोचा ना हो कि जगजीत सिंह jagjit singh जी अपने चाहने वालों को छोड़ कर इतनी दूर चले जाएंगे जहां से कोई वापस ही नहीं आता । उनकी एक गजल की लाईन इस चले जाने पर सटिक बैठती है ’’चिटठी ना कोई संदेश जाने वो कौन सा देश जहंा तुम चले गए ।’’


8 फरवरी 1941 देश में अंग्रेजों के शासन काल के अस्त होने का समय निकट आ रहा था उसी समय उदय हुआ राजस्थान के गंगानगर में एक बालक का जिसने आगे चलकर सारे जहां को अपनी आवाज से जीत लिया । जगजीत सिंह का जन्म पंजाबी परिवार में हुआ था और उनका नाम उस समय जीत रखा गया । गंगानगर के खालसा पब्लिक स्कूल से उनकी पढ़ाई शुरू हुई उसके बाद वे जलांधर आ गए ।


बचपन में अपने पिता से संगीत विरासत में मिला। गंगानगर में ही पंडित छगन लाल शर्मा के सानिध्य में दो साल तक शास्त्रीय संगीत सीखने की शुरूआत की। आगे जाकर सैनिया घराने के उस्ताद जमाल ख़ान साहब से ख्याल, ठुमरी और ध्रुपद की बारीकियां सीखीं। पिता की ख़्वाहिश थी कि उनका बेटा भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में जाए लेकिन जगजीत पर गायक बनने की धुन सवार थी।

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान संगीत में उनकी दिलचस्पी देखकर कुलपति प्रोफ़ेसर सूरजभान ने जगजीत सिंह जी को काफ़ी उत्साहित किया। उनके ही कहने पर वे १९६५ में मुंबई आ गए। यहां से संघर्ष का दौर शुरू हुआ। वे पेइंग गेस्ट के तौर पर रहा करते थे और विज्ञापनों के लिए जिंगल्स गाकर या शादी-समारोह वगैरह में गाकर रोज़ी रोटी का जुगाड़ करते रहे। 1967 में जगजीत जी jagjit singh की मुलाक़ात चित्रा जी से हुई। दो साल बाद दोनों 1969 में परिणय सूत्र में बंध गए।


उनका पहला एलबम ‘द अनफ़ॉरगेटेबल्स (१९७६)’ जबरदस्त हिट रहा । इस एलबम में एक से बढ़कर एक हिट गजलों का समावेश था । इस एलबम की एक गजल बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी आज भी उसी तरह तरोताजा है और गजल की वो महफिल ही नहीं बनी कि यदि जगजीत सिंह जी की गजल गाई जाए और ये गजल छुट जाए ।


जगजीत सिंह जी ने पारंपरिक गजलों के साथ ही फिल्मों में भी कई यादगार गीत और संगीत दिए जिनमें ‘प्रेमगीत’ का ‘होठों से छू लो तुम मेरा गीत अमर कर दो’ ‘खलनायक’ का ‘ओ मां तुझे सलाम’ ‘दुश्मन’ का ‘चिट्ठी ना कोई संदेश’ ‘जॉगर्स पार्क’ का ‘बड़ी नाज़ुक है ये मंज़िल’ ‘साथ-साथ’ का ‘ये तेरा घर, ये मेरा घर’ और ‘प्यार मुझसे जो किया तुमने’ ‘सरफ़रोश’ का ‘होशवालों को ख़बर क्या बेख़ुदी क्या चीज़ है’ ‘ट्रैफ़िक सिगनल’ का ‘हाथ छुटे भी तो रिश्ते नहीं छूटा करते’ (फ़िल्मी वर्ज़न) ‘तुम बिन’ का ‘कोई फ़रयाद तेरे दिल में दबी हो जैसे’ ‘वीर ज़ारा’ का ‘तुम पास आ रहे हो’ (लता जी के साथ) ‘तरक़ीब’ का ‘मेरी आंखों ने चुना है तुझको दुनिया देखकर’ (अलका याज्ञनिक के साथ) ।


फिल्मी गजलों के दिगर जगजीत सिंह की कई गजलें उनके चाहने वालों को जुबानी याद होंगी जैसे – तेरे आने की जब खबर महके , चांद से फूल से मेरी जुबां से सुनिए , मैं रोया परदेश में भीगा मां का प्यार , प्यार का पहला खत लिखने में वक्त तो लगता है , मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती ना मिला  , सरकती जाए है रूख से नकाब आहिस्ता आहिस्ता  ऐसी हजारों गजलें हैं जो सुनते रहो तो समय का पता ही नहीं चलता ।


लेकिन दस अक्टूबर 2011 के समय ने इस हर दिल अजीज गजलकार को हमारे बीच से हमेशा के लिए जुदा कर दिया । आज उनकी पुण्य तिथी पर उन्हें याद करते हुए दबंग न्यूज लाईव परिवार अश्रुपुरित श्रृद्धांजली अर्पित करता है ।

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