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गोबर घोटाले की जांच पर उठते कई सवाल , अधिकारी ने कहा शुरूवाती समय था हो गया होगा कोई बड़ी बात नहीं है ।

जरूरी ये नहीं की किसने गोबर बेचा जरूरी ये कि जितने का भुगतान हुआ उतना माल है कि नहीं –
रिमन सिंह परियोजना अधिकारी ।

शिकायतकर्ता ने कहा ना कोई जांच टीम आई ना ही हमें जानकारी दी गई ।

दबंग न्यूज लाईव
रविवार 29.11.2020

खैरा पंचायत के गौठान में गोबरों की भक्कम आवक के बाद प्रदेश में हडकंप मचा पूरा प्रदेश इस बात से सकते में था कि दो बैल कैसे इतना गोबर कर सकते हैं बाद में जांच अधिकारी ने बताया कि इतना गोबर दो बैलों ने नहीं दस मवेशी पालकों ने दिया है मतलब दस मवेशी पालकों से अध्यक्ष ने खरीदा है । जांच रिपोर्ट के बाद उठते सवालों की पहली कड़ी आपने कल पढ़ी थी आज इसका दुसरा पार्ट पढ़िए ।

करगीरोड कोटा – खैरा ग्राम पंचायत से सामने आए गोबर खरीदी के प्रकरण के बाद जांच टीम ने जो रिपोर्ट दी है उसने अब पहले से भी ज्यादा सवाल उठा दिए हैं । क्या गोबर खरीदी के जो नियम बने हैं उसमें ये प्रावधान है कि एक व्यक्ति गांव भर का गोबर खरीद ले और गौठान में लाकर अपने नाम से बेच दे ?

जब इसी समय इसी गांव के अन्य किसानों ने यहां लाकर गोबर बेचा है तो बाकी वो दस मवेशी पालक यहां क्यों नहीं आ पाए ?
दस मवेशी पालकों से जो गोबर खरीदा गया और उनका नाम गौठान समिति के रजिस्टर में दर्ज है तो फिर जो साप्ताहिक पत्रक बनता है उसमें उनके नाम से ही गोबर बेचना क्यों नहीं दिखाया गया ?


यदि मान भी लिया जाए कि उन दस मवेशी पालकों से ही 6400 किलो गोबर सात दिनों में खरीदा गया तो भी एक दिन में ये 900 किलो से उपर होता है तो क्या इनके यहां इतने मवेशी है जिनसे हर दिन नौ क्विंटल गोबर होता हो ?
जब सबकुछ इतना ही साफ है तो फिर उन दस मवेशी पालकों से खरीदे गए गोबर का भुगतान उनके ही खाते में क्यों नहीं कर दिया गया ? क्या भुगतान बैंक के अलावा गौठान समिति नगद भी कर सकती है ?

इस पूरे कांड के शिकायतकर्ता मुरारी जायसवाल का कहना था – ना तो गांव में जांच टीम आई और ना ही जिन्होंने शिकायत किया था उन्हें जानकारी दी गई कि जांच टीम आ रही है । जब हमने शिकायत किया है तो हमसे भी तो पूछ परख लेते कि क्या मामला है । जिन्होंने फर्जीवाडा किया है वे अब अपने पक्ष में गवाह और मवेशी पालक का जुगाड़ कर रहे हैं ।

इस जांच के बाद हमने परियोजना अधिकारी रिमन सिंह से बात की तो उनका कहना था – यहां का गौठान गांव से दूर है इसलिए वहां तक लोग नहीं गए होंगे फिर चंूकि ये पहले शुरूवाती दौर में हुआ है इसलिए अध्यक्ष ने खरीद लिया होगा । येे कोई गंभीर और बड़ा मामला नहीं है गंभीर मामला तब होता जब भुगतान ज्यादा का होता और गौठान में गोबर कम मिलता लेकिन वहां गोबर पूरा है ।


अब सितम्बर के गोबर का स्टाॅक अभी तक गौठान में वैसा ही होगा कमाल की बात है । और यदि शुरूवाती दौर का भी मामला है तो क्या नियमों के विरूद्ध कार्य किया जा सकता है ? हमने जब पहले परियोजना अधिकारी से इस बारे में बात की थी तो उनका कहना था कि कोई भी कैसे खरीद के गोबर बेच सकता है जिसका पंजीयन होगा वही बेचेगा । यदि किसी ने ऐसा किया है तो गलत किया है ।
इसके अलावा भी ढेरों सवाल होंगे जो आपके भी दिमाग में आ रहे होंगे । लेकिन जांच अधिकारी ने शायद ऐसे किसी भी सवाल की जांच नहीं की उन्होंने सिर्फ गौठान समिति का रजिस्टर देखा जिसमें दस लोगों के नाम दर्ज रहे होंगे जिनसे गोबर खरीदा गया था और एक व्यक्ति के नाम पर बेचा गया था । ऐसा रजिस्टर तो पांच मिनट में कभी भी बनाया जा सकता है ।

यदि ये सहीं है तो फिर सरकार को धान खरीदी में भी यही नियम बना देना चाहिए कि छोटे किसानों से कोचिया या मंडी अध्यक्ष धान खरीद ले और अपने नाम से मंडी में बेच दे और उन्हें अपने हिसाब से भुगतान कर दे क्योंकि धान मंडी गौठान मंडी से तो दूर ही होती है ।
बाकी भगवान , अधिकारी और नियम बनाने वाले ही बेहतर समझे । हम तो ठहरे निरे मुर्ख जिन्हें अधिकारी कहते हैं कि नियमों को पहले पढ़ लें ,जान लें ,हमसे पूछ लें ,फिर खबर छापें इतनी जल्दी क्या रहती है ।

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