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Sunday Special- जानिए कवर्धा का नाम पहले क्या था और कैसे कवर्धा फिर कबीर धाम हुआ ।

क्या है दनु दैत्य और स्थूलशिरा मुनि की कहानी और क्या हैं इनका संबंध कवर्धा से ।
पूरा वैभव , पर्यटन और रहस्य का केंद्र -कबीरधाम जिला

दबंग न्यूज लाईव की कोशिश रहती है कि हर रविवार अपने पाठकों को रूटीन खबरों के अलावा आस पास के क्षेत्र के ऐतिहासिक और पर्यटन के क्षेत्रों से रूबरू करवाया जाए । आज हम कुछ किवंदती और साक्ष्यों को मिलाकर आपको जो बताने जा रहे हैं वो काफी रोचक और रोमांचक है । दबंग न्यूज लाईव का ये अंक आपको कैसे लगा बताईएगा जरूर ।

दबंग न्यूज लाईव
रविवार 26.12.2021

राजेश श्रीवास्वत

रामायण और पुराणों में उल्लेख मिलता है कि दनु नामक एक राक्षस जिसका जन्म गन्धर्व जाति में हुआ था , वह बचपन से ही बलशाली और अत्यंत रूपवान था , उसकी सुंदरता के कारण उसके शरीर से अलौकिक प्रकाश फूटता था । उसे भगवान ब्रम्हा का भी वरदान प्राप्त था कि उसे किसी अस्त्र से नही मारा जा सकता है , अपने बल और पराक्रम के अहंकार में सुंदर शरीर के होते हुए भी वह राक्षसी रूप धरकर ऋषियों को डराया करता था ।

एक दिन स्थूलशिरा नामक मुनि ने उसके इस कृत्य के लिए उसे श्राप दिया कि वह सदैव इसी योनि में रहेगा । उसके बहुत गिड़गिड़ाने पर ऋषि ने भगवान राम के हाथों उसका उद्धार होना बताया । दनु ने एक दिन इंद्र पर आक्रमण कर दिया , चूंकि दनु का वध नही हो सकता था अतः इंद्र ने अपने दंड से उसके समूचे राक्षसी शरीर को उसके पेट ( कबंध ) में ठूंस दिया , जिससे उसकी आंखें मुंह और भुजाएं ही बाहर बची रही । इसी अवस्था मे वह पड़ा हुआ अपने करीब से गुजरने वाले जीव जंतुओं को मारकर अपना पेट भरता था ।


वनगमन के समय श्रीराम जी को भी उसने अपने भुजाओं में जकड़ लिया तब लक्ष्मण ने उसकी भुजाएं काट दी । उसी कबंध राक्षस का क्षेत्र होने के कारण कवर्धा का पौराणिक नाम -कवन्धरा ,कवधूरा , कवर्धा आदि होते हुए सन्त कबीरदास के नाम पर कबीरधाम हुआ ।

वर्णित है कि कबंध ने ही भगवान राम को उसकी भक्त शबरी का पता बताया था । कबीरधाम प्रसिद्ध सन्त कबीरदास जी की माता की गद्दी के रूप में विख्यात है जबकि पिता की गद्दी वाराणसी है ।
कबीरधाम जिला अपनी पौराणिक गाथा का अद्भुद इतिहास अपने दामन में समेटे रहस्य , रोमांच और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर पर्यटन स्थल का खजाना समेटे विद्यमान है ।

आइए जानते हैं इस जिले के कुछ दर्शनीय स्थलों को …
भोरमदेव – जिला मुख्यालय कवर्धा से उत्तर पश्चिम में 18 किलोमीटर की दूरी पर सतपुड़ा मैकल के पद तले चौरा नामक ग्राम में स्थित है छत्तीसगढ़ के खजुराहो की संज्ञा से अभिहित भोरमदेव का मंदिर ..! फणि नागवंश के छठवें राजा गोपालदेव ने ग्यारहवीं शताब्दी 1087 ईस्वी में इसका निर्माण करवाया था । मन्दिर के तीन प्रवेश द्वार हैं जो अर्धमंडप की आकृति लिये हुये है । इस मंडप में 16 स्तम्भ तथा चारो कोनो पर चार अलंकृत भित्ति स्तम्भ है । मन्दिर के वर्गाकार गर्भगृह में विशाल जलहरी के मध्य हाटकेश्वर महादेव प्रतिष्ठित हैं । गर्भगृह में ही सपत्नीक पद्मासना ध्यानमग्न योगी , नृत्य गणपति की अष्टभुजी प्रतिमा तथा फणि नागवंशी राजवंश के प्रतीक पांच फणों वाले नाग की प्रतिमा विराजित है।


काले भूरे बलुआ पत्थरों से निर्मित मन्दिर की बाहरी दीवारों पर देवी -देवताओं की आकर्षक एवं द्विभुजी सूर्यदेव की प्रतिमा प्रमुख है । मन्दिर की दीवारों पर अनेक देवी-देवता , नायक-नायिका , पशु-पक्षीयों की जीवंत प्रतिमा उकेरी गई है । मन्दिर के दक्षिण पश्चिम दिशा में लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर ष्छेरकी महलष् है लगभग 14 वीं सदी के उत्तरार्ध में निर्मित इस मंदिर में शिवजी विराजित हैं । इस मंदिर के भीतर से आज भी बकरियों की गंध आती है इसलिए इसे छेरकी महल कहते हैं । इसके थोड़ी दूर पर एक मड़वा महल है जिसे स्थानीय जन दूल्हादेव के मंदिर के रूप में पूजते हैं । इन मन्दिर परिसर में मिथुन मूर्तियां उकेरी गई है । दूर दूर से पर्यटक यहां आकर दूसरी दुनियां में खो जाते हैं ।


पचराही – कबीरधाम जिले के बोड़ला विकासखण्ड से तरेगांव मार्ग पर कवर्धा से 45 किलोमीटर की दूरी पर हांफ नदी के तट पर प्राचीनतम , पुरातात्विक एवं धार्मिक स्थल पचराही स्थित है । भोरमदेव के समकालीन इस मंदिर में भी योगी मकरध्वज की तथा अन्य मूर्तियों की साम्यता इनके समकालीन होने की पुष्टि करते हैं । स्थानीय जन इसे पचराही कंकालिन के नाम से जानते हैं ।

प्रसिद्ध इतिहासकार अलेक्जेंडर कनिंघम ने 18 वीं सदी तक यहां एक भव्य शिव मंदिर होने का उल्लेख किया है , जिसके अंदर कंकालिन माता की मूर्ति थी । हांफ नदी के तट पर किसी जमाने में विकसित सभ्यता का प्रमाण पुरातात्विक उत्खनन से प्राप्त हुआ है । इस स्थान का महत्व नागर सभ्यता में इसलिए महत्वपूर्ण है कि यहां पर नदी उत्तर पूर्व दिशा में बहती है । हिन्दू शास्त्रों के अनुसार जहां नदी ईशान कोण में बहती है वह पवित्र और ईश्वर का स्थान होता है ।

यहां पँचायतन शैली का शिवमंदिर , सबसे छोटी गणेश प्रतिमा ,और हनुमान जी की अदभुत प्रतिमा है । खुदाई के दौरान यहां 15 करोड़ वर्ष प्राचीन जलीय जीवाश्म मोलास्का का फॉसिल मिला है । पचराही के पास में ही बकेला नामक एक स्थान से नवमीं दसवीं सदी में काले ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित जैन तीर्थंकर प्रभु पार्श्वनाथ की 51 इंच ऊंची प्रतिमा सन 1978 में खुदाई के दौरान प्राप्तं हुआ है । इस स्थान में जैन तीर्थ विकसित हो रहा है …!

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