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प्रबंधक के कारनामों से परेशाान लोगों ने हरे सोने में लगा दी आग ।

प्रबंधक के तानाशाही रवैये से गरीब ग्रामीणों के मुह से छीना निवाला ।

दबंग न्यूज लाईव
मंगलवार 25.05.2021

करगीरोड कोटा प्रदेश में हरे सोने के नाम विख्यात तेंदुपत्ते में आज संग्रहाकों ने आग लगा दी । तेंदुपत्ता छत्तीसगढ़ में वनोपज और उससे आर्थिक लाभ कमाने का एक बेहतर माध्यम है । सरकार भी तेंदुपत्ता यानी हरा सोना संग्राहकों को कई लाभ समय समय पर देते रहती है । लेकिन आज कोटा विकासखंड के खैरा में हरा सोना के नाम से विख्यात तेंदुपत्ता में संग्राहकों ने ही आग लगा दी ।
प्राप्त जानकारी के अनुसार ग्राम पंचायत चपोरा में हरा सोना के नाम से प्रसिद्ध तेंदूपत्ता खरीदी नहीं होने से नाराज संग्राहको ने फड़ मुंशी और प्रबंधक के विरुद्ध नारेबाजी करते हुए तेंदूपत्ता में लगाई आग।


इस कोरोना काल में जहां सारे काम धंधे बंद पड़े और लोगों की आर्थिक स्थिति खराब हो चली है ऐसे में ग्रामीण परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत बनाए रखने लोगों की आय का साधन हरा सोना यानी तेंदू पत्ता की तोड़ाई लोगों के लिए किसी वरदान से कम साबित नहीं हो रही है। लेकिन अब प्रबंधक और मुंशी की तानाशाही रवैये की वजह से ग्रामीणों को उनकी मेहनत का फल नही मिलेगा जबकि अभी भी पत्ता खरीदने का लक्ष्य पुरा नही हुआ है।


सुबह से लेकर पूरे दिन की मेहनत के बाद संग्राहको को प्रति 100 गड्डी बेचने पर 400 रुपये मिल रहा है। कई ऐसे परिवार भी हैं जो प्रतिदिन 500 से 1000 गड्डी तेंदूपत्ता बेचकर इस अवसर का लाभ उठा रहे है। तेंदूपत्ता खरीदी किये जाने से ग्रामीणों के चेहरे खिल गए थे। ग्रामीण संग्राहकों को जहां तेंदूपत्ता बेचने से अच्छी आमदनी भी हो जाती हैं। तो वही बोनस का भी लाभ मिल जाता है।


ऐसे में जब खरीदी प्रारंभ होते ही चपोरा में लगातार दो दिन खरीदी किए जाने के बाद मौसम खराब होने की स्थिति मे तेंदूपत्ता खरीदी बंद कर दी गयी थी जिसे मौसम के साफ होते ही पुनः मुनादी कर पत्ता तोड़ने की बात कही गयी लेकिन जब ग्रामीण संग्रहको ने पत्ते लेकर बेचने गए तो मुंशी ने बहाना बनाकर पत्ता लेने से मना कर दिया जिससे ग्रामीण संग्रहको ने मुंशी व प्रबधक के खिलाफ नारेबाजी करते हुए बेचने लेकर गए पत्तो को आग लगा दिया।


 तेंदूपत्ता के संग्रहण से मिले पैसे ग्रामीणों के लिए किसी संजीवनी बुटी से कम नहीं होता गर्मी के कड़ी धूप पर पसीना बहा पत्तों के बदले मिले पैसे से ग्रामीणों का बरसात में अपनी आजीविका चलाते हैं ऐसे में इस हरा सोना कहे जाने वाले पर रोक लगाना गरीब ग्रामीण के पेट पर लात मारने के बराबर है। देखना अब यह है कि इस मामले में जिम्मेदार क्या कार्रवाई करते हैं या फिर हमेशा से जो रीत चली आ रही है वहीं होता है कि गरीबों की सुनने वाला कोई नहीं होता ।

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