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स्टेट बैंक की ऐसी असंवेदनशीलता आपने देखी नहीं होगी । पति की मौत के बाद दो साल से उसकी पत्नि भटक रही पैसों के लिए ।

दर्जनों चक्कर लगाकर थक चुकी है महिला । बैंक मैनेजर का गैरजिम्मेदाराना बयान -मुझे कुछ पता ही नहीं ।

कैंसर की सहायता के लिए डा रमनसिंह ने दिए थे पचास हजार की सहायता राशि लेकिन ना राशि प्रतापसिंह के काम आई ना अब उसकी पत्नि के काम आ रही ।

 

दबंग न्यूज लाईव
शनिवार 03.04.2021

 

Sanjeev Shukla

करगीरोड कोटा -भारतीय स्टेट बैंक की ईमेज इन दिनों लगातार गिरते जा रही है और उसका सबसे बड़ा कारण बैंक की सेवा देने की गति और उसके स्तर में गिरावट आना है इसके साथ ही बैंक के स्टाफ का हर समस्या से हाथ झाड़ देना रहा है । लेकिन इस बार जो मामला सामने आया है उसने इस बैंक की असंवेदनशीलता के सारे रिकार्ड तोड़ दिए हैं ।

प्रताप सिंह का स्टेट बैंक कोटा का अकाउंट ।

 

एक महिला जो अपने पति की नामिनी थी पति की मोैत के बाद आज दो साल से ज्यादा समय हो गए बैंक से पैसे निकालने भटक रही है लेकिन बैंक की लापरवाही ऐसी की ना महिला से ठीक से बात करती है और ना ही उसके खाते से पैसे ही निकाल के दे रही है ।
पूरा मामला है स्टेट बैंक की कोटा शाखा का । यहां प्रताप सिंह नेताम का खाता है जिसका नम्बर है 32579649040। प्रताप सिंह अचानकमार के रहने वाले थे जो कि बैंक से लगभग 25 किमी दूर है , थे है इसलिए कहा जा रहा है कि 2019 की 23 फरवरी को प्रताप सिंह की कैंसर के चलते मृत्यु हो गई ।

प्रताप सिंह का मृत्यु प्रमाण पत्र ।

प्रताप सिंह के ईलाज के लिए जब प्रदेश में डाक्टर रमन सिंह मुख्यमंत्री थे उस समय उन्होंने प्रताप सिंह के ईलाज के लिए पचास हजार रूपए की सहायता राशि दी थी लेकिन विभागों की फाईलों से होते हुए जब ये राशि प्रताप सिंह के खाते में आई तब तक प्रताप सिंह इस दुनिया से विदा ले चुके थे ।

लीलाबाई का आधार कार्ड जिसमें पति प्रतापसिंह लिखा है ।

ऐसे में प्रताप सिंह के खाते की नामिनी उनकी पत्नि लीलाबाई को बैंक प्रताप सिंह के खाते की राशि अदा कर देती । लेकिन खेल यहीं से शुरू हुआ । जिस पैसे को पाने के बाद भी प्रताप सिंह अपने ईलाज के लिए खर्च नहीं कर सका अब उस पैसे को पाने के लिए उसकी पत्नि कई बार और बार बार बैंक के चक्कर लगा रही है लेकिन बैंक की एक गलती की सजा लीला बाई को भुगतनी पड़ रही है ।

 

लीला बाई को कई बार बैंक ले जाने वाले शिवतराई के अतहर भाई ने बताया मैं खुद लीलाबाई को कई बार बैंक ले गया । लीला बाई भी कई बार बैंक गई लेकिन उसका पैसा नहीं निकल पा रहा है । बैंक वालों ने अपने कम्प्यूटर में  लीलाबाई का नाम सीताबाई लिख दिया । जबकि हमने कई बार कई दस्तावेज बैंक में जमा किए जिसमे आधार कार्ड,राशनकार्ड ,लीलाबाई का बैंक खाता और ग्राम सभा के प्रस्ताव के साथ ही शपथ पत्र भी है कि प्रतापसिंह की पत्नि का नाम सीताबाई नहीं लीलाबाई है ।

लीलाबाई का राशन कार्ड जिसमें पति प्रतापसिंह लिखा है ।

समस्या यहीं तक नहीं है प्रताप सिंह के खाते में डा रमनसिंह के द्वारा दिए गए पचास हजार के साथ ही प्रधानमंत्री आवास के लिए आए पैसे की अंतिम किश्त 24 हजार की भी राशि है । जिसके लिए ग्राम पंचायत ने ग्राम सभा में अनुमोदन करते हुए ये राशि लीलाबाई को देने के लिए कहा है ।

लेकिन बैंक के जिम्मेदार अधिकारी पिछले दो तीन साल से सिर्फ लीलाबाई और उस सीताबाई के चक्कर में जो सीताबाई है ही नहीं ।
हमने इस संबंध में बैंक के मैनेजर  से बात की तो उनका जवाब सुनकर हमें लगा कि लीलाबाई की समस्या इतनी जल्दी खतम होने वाली नहीं है । बैंक मैनेजर का कहना था – ये मामला मुझे पता ही नहीं है । मैं कुछ नहीं कर सकता । नामिनी को बोलिए मेरे से मिले ।फिर क्या होगा देखना होगा ।

पिछले दो तीन सालों में पता नहीं बैंक में कितने मैनेजर आए और गए होंगे । प्रतापसिंह और लीलाबाई की फाईल बैंक में ही है । सारे दस्तावेज बैंक में है । किसी अधिकारी ने उस फाईल की धुल को झाड़ने की जहमत नहीं उठाई । उठाए भी क्यों प्रताप सिंह या लीलाबाई ने कर्ज तो लिया नहीं था । कर्ज लेते तो निश्चित ही बैंक कुर्की के लिए दरवाजे पहुंच जाती । यदि मैनेजर इतने ही संवेदनशील होते तो हमसे कहते कि आप खाता नम्बर दीजिए मैं फाईल दिखवाता हूं ।

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