बिलासपुर

टच स्क्रीन पर चलती ऊंगलियां और ऑनलाइन रिश्ते …

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✍■ नथमल शर्मा

नर्मदा के बिलकुल पास से आती अरपा ने इस शहर को असीमित दुलार दिया। इधर जूना बिलासपुर तो उधर चिंगराज, चांटीडीह। हर कोई इसकी रेत पर चलते, पानी में भीगते एक-दूसरे से मिलते रहा। अरपा तो अब भी करती है/करना चाहती है दुलार। हम ही हैं कि नहीं जाते अपनी अरपा के पास।

इन दिनों तो यह ‘न जाना’ जैसे एक सबक बनकर ही आया है। कोविड 19 से उपजे दु:ख के साथ जी रहे हैं हम अरपापारी भी। पूरी दुनिया इस विषाणु से त्रस्त है। सब घरों में बंद। यह बंद कब तक ? नहीं है जवाब किसी के पास। लाखों गाड़ियां बंद पड़ी है। करोड़ो लीटर पेट्रोल बच गया है। इसमें अच्छा देखने वाले प्रदूषण से बच जाने की सराहना कर रहे हैं।

अपने सूनसान शहर के सबसे व्यस्त इलाक़े में लाल बहादुर शास्त्री स्कूल है। उसके दो चौक आगे शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय और बिलकुल पास में महारानी लक्ष्मी बाई कन्या स्कूल भी। आज के बंद मेरे शहर के ज्यादातर लोगों ने इन्ही स्कूलों से क ख ग सीखा है। सीख कर जिंदगी की स्लेट पर लिखा भी है। एक मंत्री हुए थे अशोक राव। महापौर भी रहे। ईमानदारी की मिसाल। यह तो सिर्फ एक नाम ही है। डॉ. श्रीधर मिश्र, चित्रकांत जायसवाल, रोहिणी कुमार बाजपेयी, मदनलाल शुक्ल  जैसे अनेक नाम है। इन्ही स्कूलों से पढ़ कर रचते रहे खुद को और अपने बिलासपुर को भी। अब इनकी तीसरी-चौथी पीढ़ी आ गई है। इन्हें जिंदगी का सबक सिखाने वाली स्कूलों में कोई नहीं जाता अब। इनके बच्चों को भी अच्छी नहीं लगती ये सब स्कूलें।

कोविड 19 से सूने हुए शहर में सब कुछ बंद है। बंद के पहले जब हम सब जिंदगी की दौड़ में भाग रहे थे। एक अंधी ही दौड़ में। तब किसी दिन एक पल रूक कर नहीं देखा इन विद्या मंदिरों को। पिछले बरसों में चमचमाती स्कूलें खुल गई। बड़ी-बड़ी बसें दौड़ने लगी। नन्हे कांधों पर बस्ते का बोझ बढ़ते गया और हम ए फार एप्पल सिखा कर गर्वित होते रहे। अंधी दौड़ में खुद को शामिल करते हुए अपनी स्कूल के क, ख, ग को भूलते ही तो रहे। हालांकि ये सब भी इन दिनों सूने है। कोरोना से बचने सब घरों में ही हैं, जो कि जरूरी है इन दिनों। सिर्फ़ स्कूलें ही क्यों सब कुछ बंद है।

अपने मोहल्ले की किराना दूकान तो हमने आधुनिक होने का भाव लिए कब से छोड़ दी और मॉल या किसी बड़े बाज़ार के ग्राहक (नहीं कस्टमर) हो गए। न जाने नाज़ टेलर्स, फ्रेंड्स या कि गफ्फार भाई के यहां कब से नहीं गए नाप देने। अब तो सब कुछ और सभी नाप के कपड़े मिल जाते हैं मॉल में, लेकिन फिर भी कुछ नहीं मिल रहा है। कोरोना से सब कुछ सूना-सूना। अरपा के किनारों पर अब वैसी रौनक नहीं। सूरज, हवा, चांद, तारे, पृथ्वी सब अपनी रफ़्तार से ही तो हैं। इस संकट में भी वे हमें अपना सब कुछ दे रहे हैं। हम ही इनके अपराधी हैं जो चाह कर भी नहीं ले पा रहे हैं। फिर भी इस सबसे भयावह समय में ये ही हमें बचा रहे हैं। हालांकि हम इसे कितना समझ पाए पता नहीं। कोरोना के आंकड़ो को देख कर डर रहे हम शायद ही घर में कभी प्रकृति के इस तरह हमें बचा लेने पर बच्चों से बात करते हैं।

कुछ बरस पहले आया था मोबाईल फ़िर स्मार्टफोन। और साथ-साथ ऑनलाइन। इस ऑनलाइन में पिज़्ज़ा मंगाते और बीस मिनट से देर होने पर फ़्री में लेते सभी खुश हुए थे। फिर इस नशे के आदी हो गए। अमेज़ान पर शापिंग करना जैसे स्टेटस सिंबल हो गया। गोलबाजार तक भी जाने की जहमत नहीं। दो समोसे भी मौसाजी से ऑनलाइन। इस ऑनलाइन की गिरफ्त से कोई नहीं बचा। बाइक पर लाल डिब्बे हर कालोनी, हर मोहल्ले में दिखने लगे। अब ये सब कुछ बंद। कोविड 19 विषाणुओं का भय। बात फिर वही जहां से शुरू हुई थी। स्कूलें और अस्पताल जो अब बहुत बड़े व्यवसायिक केंद्र हैं। इसलिए भी कि सरकार अपनी जिम्मेदारी से पीछे हट गई।

अरपा किनारे बिलासपुर ही क्यों तखतपुर, मुंगेली जैसे कस्बेनुमा शहरों में भी निजी स्कूलों और अस्पतालों का जाल फैल गया और चाहे-अनचाहे हर कोई इसमें फंस ही गया। फंस ही रहा है। क, ख, ग  नहीं एबीसी से अब तिजोरियां भरती है। साल भर में ट्विंकल -ट्विंकल या ए फार एप्पल सीखने के लिए लगभग एक लाख का ख़र्च। हो रहा है। कर रहे हैं लोग। तरक्की करनी है। कोई पीछे न छूट जाए। कोरोना में सब बंद पर इन चमकती स्कूलों ने एक काम सचमुच अच्छा किया। ऑनलाइन क्लासेस। हर सेक्शन ने वाट्स अप ग्रुप बना लिया। ऑनलाइन होमवर्क दिए जा रहे हैं। अनचाही छुट्टी से परेशान बच्चों और उनके माता-पिता को कुछ तो राहत मिली। मुन्नुलाल शुक्ल स्कूल तो रही नहीं। गजानंद सारथी स्कूल का नाम भी बदल गया। लाल बहादुर शास्त्री स्कूल में बच्चे नहीं है। होते तो भी ये ऑनलाइन नहीं पढ़ते।

अपनी बात की आखिरी पंक्ति लिखते-लिखते खबर आई कि कटघोरा के कारण अरपा का यह प्रिय शहर भी संकट में है। अपने शहर की सीमा पर और ज़्यादा  सख़्ती। यह खबर भी ऑनलाइन ही मिली। टच स्क्रीन पर इसे टाइप करते हुए ऊंगलियां कांप रही है। उधर बिटिया के मोबाईल पर लाइट चमकी, आज का होमवर्क आ गया। बाहर पुलिस की बूटों की आवाज़ और बढ़ गई। अस्पतालों में डाक्टरों, नर्सों की दौड़ -धूप बढ़ गई। वे भी टच स्क्रीन पर संदेशे भेज रहे हैं पीपीई के लिए। उधर एक महिला समूह ने कुछ मास्क बनाए हैं कपड़े के, इसकी तस्वीरें भी आई है कुछ ग्रुप्स में। कोरोना से थमे अरपावासी भी इस भयावह समय से जूझ रहे हैं। टच स्क्रीन पर चलती ऊंगलियां रिश्ते निभा रही है, अरपा अपने ही पानी के लिए तरस रही है।

–लेखक देशबंधु के पूर्व संपादक एवं वर्तमान में दैनिक इवनिंग टाइम्स के प्रधान संपादक हैं।

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