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Amazing scissors दादा ले पोता बरते – एक ऐसी वस्तु जो आपके दिनचर्या में तो शामिल है लेकिन शायद ही आप उसका इतिहास जानते हों ।

Amazing scissors- आखिर कैंची  ने सैकड़ों साल का सफर कैसे पुरा किया ।

Sanjeev Shukla

आज सेलुन में जब बाल पर कैंची कच-कच करके चलने लगी तो उसी समय दिमाग में ये ख्याल आया कि आखिर इस कैंची का अविष्कार कैसे हुआ होगा ? किसने किया होगा और क्यों किया होगा ? कैसे कैंची इस अवस्था तक पहुंची होगी ? कैसे इसे पकड़ने के लिए अंगुठे और उंगलियों के लिए जगह बनाई गई होगी ? ये सवाल उठते ही सोच लिया गया था कि आज इस कैंची पर कुछ तो लिखा ही जाएगा ।

 

कैंची ? कैंची शब्द का उपयोग हमारे दिनचर्या में हमेशा होते रहता है दर्जी से लेकर पान दुकान और घरों तक में इसका इस्तेमाल होता है । कैंची पर तो मुहावरा भी है कि देखो कैसे कैंची की तरह जुबान चल रही है । सहीं भी है कैंची जब चलना चालू करती है तो फिर कचकच करके चलते ही जाती है । सवाल ये भी उठा कि कैंची खालिस अपने हिंदुस्तान की खोज है कि विदेशी ?


भारत में मेरठ कैंची और इसके निर्माण को लेकर सबसे अव्वल स्थान रखता है । यहां तो यह कहावत भी प्रचलित है कि मेरठ की कैंची दादा ले ले तो पोता तक उसे चलाते रहता है । याने मेरठ की कैंची की गुणवत्ता में सबसे आगे है । लेकिन क्या आपने कभी ये सोचा है कि मेरठ में सदियों से बनने वाली इस कैंची का आविष्कार किसने किया ?


वैसे तो कैंची का आविष्कार किसने किया ? कब किया और क्यों किया । इसकी कोई सटिक जानकारी तो उपलब्ध नहीं है लेकिन अधिकतर जगह कैंची के आविष्कारक के तौर पर लिओनार्दाे द विंची (1452-1519) को श्रेय दिया गया है । माना जाता है कि लगभग 1500 ईसा पूर्व प्राचीन मिस्र में कैंची का आविष्कार किया गया था। यह एक कांस्य की ‘स्प्रिंग कैंची’ थी जिनमें लचीली पट्टी द्वारा हैंडल पर जुड़े दो कांस्य ब्लेड शामिल थे। इससे किसी चीज को काटने के लिये हैंडल की लचीली पट्टी को एक साथ दबाया जाता था और ब्लेड से वह चीज कट जाती थी।

मेरठ कैंची के लिए दुनिया भर में मशहूर है, इसके लिये कार्बन स्टील ब्लेड, पुराने बर्तनों, पुराने रेलवे रोलिंग स्टॉक, ऑटोमोबाइल के धातु के खंडों का उपयोग किया जाता है, तथा इसके हैंडल को मिश्र धातु या प्लास्टिक से बनाया जाता है। इस तरह की पहली कैंची असली अखुन द्वारा वर्ष 1653 के आसपास बनाई गई थी। अन्य कैंचियों की तुलना में, मेरठ की कैंची की कई बार मरम्मत कर सकते है, और उसे दुबारा उपयोग में ला सकता है। इसीलिए यहां एक मुहावरा अत्यंत प्रसिद्ध है “दादा ले, पोता बरते” जोकि इसकी गुणवत्ता और सदियों तक इसके पुर्नप्रयोग करने की क्षमता को संदर्भित करता है।


इनके अलावा रोम में 100 ईस्वी के आसपास धुराग्र कैंची या क्रॉस-ब्लेड(ब्तवेे-ठसंकम) कैंची का आविष्कार किया गया था जोकि कांसे या लोहे से बनी हुई थी और इसमें नुकीले सिरों और हैंडल को बीच में एक बिंदु पर जोड़ा गया था। इस प्रकार की कैंची का बड़े पैमाने पर उत्पादन 1761 में शुरू हुआ, जब शेफ़ील्ड (यूरोप) के रॉबर्ट हिन्क्लिफ ने इंग्लैंड में पहली बार इसे बनाने के लिये कच्चे इस्पात का इस्तेमाल किया। यह प्रत्यक्ष रूप से आधुनिक कैंची के समान थी। पुरातत्व अभिलेखों से पता चलता है कि इसी समय के आसपास आधुनिक डिजाइन की इस कैंची ने चीन और सुदूर पूर्व के अन्य देशों में भी प्रवेश किया था।


इसलिए अब आप जब अपने हाथ में कैंची उठाएं तो उसके सदियों के इतिहास पर थोड़ा गौर कर लीजिएगा कि आपके हाथ में सिर्फ एक कैंची नहीं ऐतिहासिक कैंची है । जिसका उपयोग पान वाले से लेकर टेलर और डाक्टर तक धड़ल्ले से करते हैं सोचिए यदि कैंची ना होती तो क्या क्या नहीं होता ।

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