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छत्तीसगढ़ उच्च शिक्षा विभाग का एक और कारनामा जान चौंक जाएंगे ।

उच्च शिक्षा विभाग ने अपने कर्मचारियों को इनकम तो कराई नहीं लेकिन टैक्स काट लिया ।

2016 में मिलने वाले सातवे वेतनमान के एरियर्स की राशि अभी तक प्राप्त नहीं ।

दबंग न्यूज लाईव
रविवार 05 मई 2024

रायपुर – छत्तीसगढ़ का उच्च शिक्षा विभाग कैसा है और उसकी कार्यप्रणाली कैसी है इसके बारे में दबंग न्यूज लाईव ने समय समय पर काफी खबरें प्रकाशित की हैं । उच्च शिक्षा जैसा विभाग जिसे पूरे प्रदेश में आदर्श स्थापित करना चाहिए दुसरे विभागों से भी अपनी कार्यप्रणाली और अधिकारियों के गैरजिम्मेदारी के कारण फिसड्डी ही साबित होता है ।


उच्च शिक्षा विभाग के इस कारनामें ने तो गैरजिम्मेदारी के सारे रिकार्ड ही तोड़ डाले हैं । विभाग ने अपने कर्मचारियों को मिलने वाले सातवें वेतनमान के एरियर्स की राशि तो प्रदान नहीं कि उल्टे उस राशि पर इनकम टैक्स काट लिया मतलब दिया कुछ नहीं लेकिन उस पर टैक्स जरूर काट लिया ये शायद पूरे भारत में पहला मामला हो जहां इनकम तो हुई नहीं लेकिन इनकम टैक्स काटा गया ।

केन्द्र सरकार ने एक जनवरी दो हजार सोलह को सातवें वेतनमान की सिफारिशें लागू की । इस सिफारिश के बाद कर्मचारियों को सातवें वेतनमान के बढ़ोत्तरी की राशि मिलनी थी । छत्तीसगढ़ सरकार ने 2018 में सातवें वेतनमान की घोषणा की और एक जनवरी 2016 से  इसे देना निश्चित किया । प्रदेश सरकार के सभी विभागों ने सातवें वेतनमान की बढ़ी एरियर्स की राशि अपने कर्मचारियों को किश्तों में देना शुरू किया लेकिन उच्च शिक्षा विभाग ने यहां पर नया खेला करते हुए अपने कर्मचारियों मिलने वाले राशि में से इनकम टैक्स और जीपीएफ की राशि काटने के बाद सारी राशि के-डिपाजिट में जमा कर ली । 

एक जनवरी 2016 से गणना के बाद की सभी राशि जो कि करोडों में है राज्य शासन के अधिकारियों ने दबा दी। के डिपाजिट में रखी गई राशि 6 साल बाद भी उच्च शिक्षा विभाग के अधिकारियों को अप्राप्त है। मजे की बात ये है कि विभाग ने अपने कर्मचारियों को भले ही यह राशि प्रदान नही की है परंतु इस पर 2018 में ही आयकर की कटौती भी कर ली । शायद यह पहला मामला दिखता है जहां अधिकारियों को बिना आय हुये आयकर जमा करवाया गया है।

दूसरी बात यह कि के डिपाजिट में जमा राशि पर राज्य सरकार कोई ब्याज प्रदान नही करती इस तरह 2018 मे जमा राशि का आज के समय में अवमूल्यन तो हो ही गया होगा । 2018 के पश्चात अनेक अधिकारी सेवानिवृत्त हुए जिनकी सारी राशि तुरंत प्रदान किया जाना था परंतु उन्हे भी सातवे वेतनमान की राशि जो के डिपाजिट मे जमा है वह नही दी गई।

अनेक बार उच्च शिक्षा विभाग के अधिकारियों के सामने आवेदन के पश्चात भी जब कोई कार्यवाही नही हुई तो मजबूरी मे सेवानिवृत्त प्रोफेसर डा जे के मेहता ने माननीय छत्तीसढ उच्च न्यायलय मे याचिका दायर की  ।
कोर्ट की फटकार के बाद विभाग के अधिकारियों के कान में जूं रेंगी और उन्होने फाईलों को खंगालना शुरू किया तो पता चला कि केंन्द्र सरकार के द्वारा छत्तीसगढ उच्च शिक्षा विभाग को के डिपाजिट की राशि संबंधित अधिकारियों को देकर केंद्र से अंशदान लेने हेतु कई बार पत्र आ चुका है। केंन्द्र सरकार ने राज्य शासन को 2022 की डेडलाईन दी थी लेकिन राज्य के अधिकारी गहरी निंद्रा में थे।

विभाग के सूत्रों से पता चला है कि कोर्ट के निर्देश के बाद उच्च शिक्षा संचालनालय के एक अधिकारी दिल्ली जाकर आवश्यक कार्यवाही करके आये है और अब सरकार के डिपाजिट की राशि विमुक्त करने के तरफ प्रयास कर रही है। इस संबंध में समस्त महाविद्यालयों के प्राचार्याे से जानकारी मांगी गई है। 5 यह भी खबर है कि माननीय छत्तीसगढ उच्च न्यायलय ने 02 मई को इस मामले में शासन को 12 जून 2024 तक के डिपाजिट की राशि याचिकाकर्ताकर्ताओं को प्रदान करने एवं इस संबंध में शपथपत्र प्रस्तुत करने हेतु आदेशित किया है।


इस संबंध में  हाईकोर्ट के एडवोकेट डा  जे के मेहता से दबंग न्यूज लाईव ने विस्तार से इस मामले में बात की तो उनका कहना था -” सातवें वेतनमान के एरियर्स की राशि अभी तक मिल जानी थी लेकिन उच्च शिक्षा विभाग इस मामले से आंख मुंदा रहा । दो नवबंर 2017 को केन्द्र से एक पत्र शासन को आया था जिसमें लिखा गया था कि सातवें वेतन मान की राशि देना है लेकिन उसमें केन्द्र ने एक शर्त लगा दिया किबढ़ी हुई राशि का पचास प्रतिशत राशि राज्य सरकार देगी और पचास प्रतिशत केन्द्र सरकार । राज्य सरकार ने उच्च शिक्षा के कर्मचारियों को भुगतान किए बिना ही केन्द्र से रिएम्बश मांगने की प्रक्रिया शुरू कर दी जबकि 2019 तक ही इस पूरे मामले को निपटा लेना था । उच्च शिक्षा विभाग के अधिकारियों की लापरवाही का खामियाजा उच्च शिक्षा विभाग के कर्मचारियों को उठाना पड़ा है कई सेवानिवृत्त हो गए कई इस दुनिया से चल बसे । आयोग की इस लापरवाही के विरूद्ध हमने माननीय उच्च न्यायालय में याचिका प्रस्तुत किया है  जिसके काफी सकारात्मक रिजल्ट आए हैं । विभाग ने यहां भी मामले को डिले करने की कोशिश की लेकिन माननीय उच्च न्यायालय ने दो मई 2024 को सुनवाई करते हुए विभाग को आदेशित किया है कि 12 जून 2024 तक विभाग एक एफेडेविट जमा करे जिसमें वो बताए कि इस पूरे प्रकरण में उसने क्या किया है ।”

उच्च शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली और उसके विरूद्ध कानूनी लड़ाई ने ये जरूर बता दिया है कि यदि आपको अपना हक लेना है तो आपको लड़ाई तो लड़नी ही पड़ेगी बिना आवाज उठाएं कुछ मिलने वाला नहीं है लेकिन इसके साथ ये सवाल भी खड़ा होता है कि ऐसे कितने लोग होंगे जो ये लड़ाई लड़ पा रहे हैं क्या अपने देश में बिना लड़ाई लड़े कुछ भी जायज मिलना मुश्किल है ?

 

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