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गोबर घोटाले की जांच में हो गई गोबर से लिपाई-पुताई , ये तो होना ही था ।

जांच अधिकारी ने रिपोर्ट दी चूंकि गौठान दूर है इसलिए अध्यक्ष ने सबका गोबर खरीद कर बेचा और 1.75 के हिसाब से भुगतान किया ।
फिर तो धान खरीदी में भी यही नियम लागू कर देना चाहिए क्योंकि धान मंडी गोबर मंडी से तो दूर ही होती है ।

दबंग न्यूज लाईव
शनिवार 28.11.2020

 

कोटा जनपद के अंतर्गत आने वाले ग्राम पंचायत खैरा में गोबर खरीदी में भ्रष्टाचार उजागर होने के बाद जो हडकंप मचा था वो अब जांच के बाद धीरे धीरे ठंडा हो जाएगा लेकिन इस जांच के बाद कई सवाल हैं जो सामने आ रहे हैं । इस पुरे मामले में प्रथम किस्त आज पढ़िए ।

करगीरोड कोटा- कोटा जनपद पंचायत के ग्राम पंचायत खैरा में गौठान समिति के द्वारा अध्यक्ष के नाम से खरीदे गए एक हफते में 6400 किलो गोबर ने गौठान से गोबर का जिन्न पैदा कर दिया था । दबंग न्यूज लाईव ने सबसे पहले इस खबर को प्रकाशित किया था जिसके बाद प्रदेश भर में हलचल मच गई थी । आम जनता से लेकर अधिकारी तक अंचभित की आखिर ऐसा कैसा हो गया ।


खैरा गौठान समिति ने 29 सितम्बर से 05 अक्टूबर के बीच गोबर खरीदी का जो पत्रक जनपद पंचायत में दिया उसके हिसाब से इस हफते गौठान समिति के अध्यक्ष कृष्ण कुमार साहू के नाम से समिति में 6400 किलो गोबर की खरीदी की गई । ये चोैंकाने वाला तथ्य था कि आखिर एक हफते में एक मवेशी पालक जिसके पास गांव वालों के मुताबिक दो बैल और पशु विभाग के अनुसार पांच मवेशी हों इतना गोबर कैसे बेच सकता है ।


मामला बड़ा था इसलिए खबर भी बड़ी थी और सरकार की महत्वाकांक्षी योजना गोधन न्याय योजना में विसंगति की थी कि कैसे किसी योजना का लाभ कुछ लोगों द्वारा लिया जा रहा है इसलिए खबर छपी और हडकंप मचा । लेकिन इतना पता तो हमें भी था कि जांच के बाद सब ठीक हो जाएगा । बड़े बड़े मामलों में लिपाई पुताई हो हो जाती है , फिर यहां तो गोबर ही था जो आता ही लिपने पोतने के काम है तो फिर इस मामले में कैसे पोताई नहीं होगी । जानकारी के मुताबिक जांच हुई और सब लीप पोत के ठीक कर दिया गया ।

जांच रिपोर्ट में जो अधिकारी गए थे उनके हिसाब से गौठान समिति में सब ठीक है , कहीं कोई गड़बड़ी नहीं है । यहां दो बैल से नहीं दस मवेशी पालकों से इतना गोबर खरीदा गया है । रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि चूंकि गौठान गांव से दो किमी दूर है इसलिए किसान वहां नहीं आ पाए अतः अध्यक्ष ने सभी से गोबर खरीदा और भाड़े का 25 पैसे प्रति किलो के हिसाब से काट के 1.75 रू.दस मवेशी पालकों को दे दिया ।


अब सवाल ये उठता है कि इन दस मवेशी पालकों ने जिनके यहां इतना गोबर होता है बाकी के हफतों में क्यों गोबर नहीं बेचा ? और जब इतना गोबर होता है तो उन्होंने अपना पंजीयन क्यों नहीं करवाया ?


जब 29 सितम्बर से 05 अक्टूबर के बीच इतनी बड़ी मात्रा में गोबर बेचा गया तो फिर 06 दिसम्बर से 12 दिसम्बर के बीच मात्र 640 किलो ही गोबर अध्यक्ष के नाम पर कैसे बेचा गया ? क्या जिन लोगों ने पहले अध्यक्ष को गोबर बेचा उन्होंने इस हफते अध्यक्ष को नहीं बेचा ? फिर इतना गोबर कहां चले गया । क्या बाकी के हफतों में इन मवेशी पालकों ने गोबर बेचना उचित नहीं समझा ?
इस गांव में जिन लोगों ने गोबर बेचा है वो भी बड़ी मात्रा में बेचा है जबकि जानकारी के अनुसार इनके यहां गिनती के ही मवेशी है तो क्या सभी दुसरों का गोबर लेकर बेच रहे हैं ।

इस पूरे मामले की परत खोलती जानकारी दबंग न्यूज लाईव के दुसरे अंक में पढ़िए और ये भी जानिए कि इस पूरे मामले में अधिकारी क्या कहते हैं I

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