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कोटा परियोजना का मामला – आंगनबाड़ी के दलिया का पाकिट बिकता है बाजार में 10 से 15 रू पैकेट ।

हितग्राही क्यों नहीं खाते ? क्यों बेच देते हैं बाजार में ।
कोटा परियोजना के शहरी सेक्टर का मामला ।

दबंग न्यूज लाईव
मंगलवार 04.08.2020

 

सूरज गुप्ता

करगीरोड कोटा महिला एवं बाल विकास विभाग के द्वारा गर्भवती महिला और शिशुवती महिला के स्वास्थ्य एवं पोषण के लिए रेडी टू ईट के पैकटों का वितरण किया जाता है । लेकिन विडबंना ये है कि इस पैकेट का करना क्या है और ये कितना महत्वपूर्ण है इसकी जानकारी शायद विभाग हितग्राहियों को नहीं देता और इसी का नतीजा होता है कि ये पैकेट सीधे बाजार में बिकने चले आते हैं । आज भी कोटा के वार्ड एक के आंगनबाड़ी केन्द्र से बंटा रेडी टू ईट को पैकेट हितग्राही ने अपने बच्चों के हाथ बेचने के लिए बाजार में भेज दिया । दो छोटे बच्चे छह पाकिट रेडी टू ईट लेकर दुकान दुकान बेचने निकले । एक पैकेट वे पंद्रह रूपए मेें बेचने को तैयार थे ।


समझा जा सकता है कि सरकार का ये पौष्टिक आहार प्रदेश की महिला एवं बच्चों को कितना पोषण प्रदान कर रहा है । बच्चों ने बताया कि अभी मैडम ने दिया है तो घर में मम्मी बोली बेच के आ जाओ । हमारे पास पैसा नहीं है इसलिए बेच रहे हैं ।


ये पहली बार नहीं है जब इस तरह से रेडी टू ईट का पैकेट बाजार में बिक रहा है । इसके पहले भी कोटा परियोजना की कई शिकायतें सामने आई हैं । खासकर एक विशेष रेडी टू ईट सप्लाई करने वाले समूह के द्वारा दिया जा रहा ये पैकेट पशु आहार केन्द्र से लेकर जानवरों को खिलाने के लिए लोग ले लेते हैं ।


एक सवाल ये भी उठता है कि आखिर जब ये इतना पौष्टिक और स्वादिष्ट होता है और इससे दर्जनों व्यंजन बनाए जा सकते हैं तो फिर हितग्राही इसे दस पंद्रह रूपए में क्यों बेच देते हैं ? शायद या तो विभाग के अधिकारी कर्मचारी और जिम्मेदार लोग इस रेडी टू ईट के महत्व को हितग्राहियों को समझा नहीं पा रहे या फिर ये आहार इतने घटिया क्वालिटी का हो कि हितग्राही इसे खाना ही नहीं चाहते हों ।


लेकिन इन सबके बीच इतना तय है कि ऐसे आहार बांट कर जिसकी लोगों को जरूरत ही नहीं है सरकार सिर्फ पैसे खर्च कर रही है । क्योंकि जिस उद्देश्य से ये योजना शुरू की गई है उसका कोई अच्छा रिजल्ट तो देखने में आ नहीं रहा । आज भी महिलाओं और बच्चों के ना तो कुपोषण में कमी आई है और ना ही उनके स्वास्थ्य में ही सुधार हुआ है ।


अधिकारी और सुपरवाईजर जिन्हें इसकी मानिटरिंग करनी चाहिए वे करते नहीं कार्यकर्ता पैकेट देकर छुट्टी पा जाती है और पैकेट वितरण करने वाला समूह अपने बिल निकालने के लिए कमीशन देते फिरता है । याने जिसको लाभ मिलना चाहिए उसे नहीं किसी और को लाभी मिलता है । सरकार और विभाग को इस योजना पर फिर से विचार करना चाहिए और कोई ठोस योजना बनाई जानी चाहिए या कम से कम जिम्मेदारी ही तय करनी चाहिए । इस सबंध में परियोजना अधिकारी और सेक्टर सुपरवाईजर से बात करने की के लिए सम्पर्क किया गया तो उनसे बात नहीं हो पाई ।

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