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पिपरतराई पंचायत ने मनरेगा के काम को दे दिया ठेकेदारी में , अब ठेकेदार घुम रहा पैसे के लिए।

काम करने वाले को पैसे के लिए चार माह से घुमा रहे हैं सरपंच और सचिव ।
ठेकेदार ने लगाया आरोप कहा सब जगह आवेदन दे दिया लेकिन कुछ नहीं हो रहा ।
सचिव दुर्जन साहू का कहना – कोई कुछ भी बोल सकता है ।

दबंग न्यूज लाईव
सोमवार 02..11.2020

 

करगीरोड कोटा कोटा जनपद के अंतर्गत आने वाले ग्राम पंचायत पिपरतराई में मनरेगा के तहत धान मंडी में चबुतरा निर्माण का काम आया । इस काम को पंचायत के सरपंच और सचिव दुर्जन साहू ने ठेके पर गांव के ही अनिल कुमार और सत्यप्रकाश जो कि पंचायत का पंच भी है को दो लाख में ठेके पर इस शर्त पर दे दिया कि दो लाख में से पचास हजार आपके खाते में आएंगे और डेढ लाख नगद पंचायत आपको देगी ।


पंचायत का काम था इसलिए अनिल और सत्यप्रकाश ने इस काम को कर दिया । काम होने के बाद पंचायत ने मजदूरी भुगतान का चालिस हजार रूपया मजदुरों के खाते में डाल दिया । बाकी के पैसे के लिए ठेकेदार सरपंच और सचिव के चक्कर लगाने लगे । कुछ दिन बाद सचिव ने ठेकेदारों को तीस हजार रूपए नगद भी दिया । याने दो लाख के काम करने के बाद ठेकेदार को मात्र सत्तर हजार रूपए ही मिले बाकी के लिए चार से छह माह हो गए कोई भुगतान नहीं दिया गया ।
पिछल कई माह से ठेकेदार बाकी पैसों के लिए जनपद से लेकर कलेक्टर तक आवेदन दे चुका है लेकिन अभी तक उसे अपने बाकी के पैसे नहीं मिले हैं ।


अनिल अनंत ने बताया कि – सरपंच और सचिव ने उसे चबुतरा बनाने के लिए दो लाख में ठेका दिया और ठेका देते समय कहा कि आज काम पूरा करो कल सुबह पैसा ले लेना । हम लोग रात को लाईट जला जला के काम किए हैं लेकिन चार माह बाद भी पैसा नहीं मिला । कलेक्टर से लेकर जिला सीईओ तक अपनी समस्या बता चुके हैं लेकिन कोई हल नहीं निकल रहा है । मजदूरी भुगतान का चालिस हजार रूपया मजदूरों के खाते में डाला गया और तीस हजार रूपया हमें नगद दिया गया । अभी कई मजदूरों को जिनसे हमने काम कराया है उनका भुगतान करना है ।

इस संबंध में पंचायत के सचिव दुर्जन साहू का कहना था – ठेके में नहीं दिया गया है कोई भी कुछ भी कह सकता है । मनरेगा का काम है मजदुरी भुगतान चालिस हजार मजदुरों के खाते में किए हैं । बाद में ये लोग ज्यादा हल्ला कर रहे थे तो मटेरियल सप्लायर से ही तीस हजार रूपए लेकर दिया गया था । अब जब पैसा आएगा तब दिया जाएगा ।

जनपद सीईओ संध्यारानी कुर्रे का कहना था – मनरेगा का भुगतान साल में तीन बार ही होता है । बाकी यदि सरपंच सचिव ने काम ठेके पर दिया है तो वो समझे ।

अब कौन क्या क्या समझे , समझ के बाहर है । सचिव सरपंच ने मनरेगा का काम ठेके पर कैसे दिया ? चार माह बाद भी काम का भुगतान कैसे नहीं हुआ ? अधिकारियों के पास शिकायत के बाद भी क्यों कुछ नहीं हो रहा ? यदि पैसा ही नहीं आया तो पंचायत ने तीस हजार कैसे और कहां से नगद दे दिया ? सचिव ने कैसे बोल दिया कि लोग कुछ भी बोलते हैं ? अब इतने सवाल का जवाब तो समझ के बाहर है ।

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