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शिकायतकर्ता का नाम पता गलत हुआ तो पुलिस नहीं करेगी जांच – डीजीपी डीएम अवस्थी ने जारी किया निर्देश ।

लेकिन सबसे बड़ा सवाल क्या ऐसे में भ्रष्ट अधिकारियों के हौसले नहीं होंगे बुलंद ?

क्योंकि अधिकारियों के भ्रष्टाचार और काले कारनामों की शिकायत अपने नाम से करने से बचते हैं लोग ।

 

दबंग न्यूज लाईव
रविवार 24.01.2021

 

संजीव शुक्ला

रायपुर प्रदेश में अब किसी भी अधिकारी के खिलाफ तभी जांच होगी, जब शिकायत करने वाले का नाम और पता सही होगा। अज्ञात या फर्जी नाम से पहुंचने वाले शिकायती पत्र के आधार पर किसी के खिलाफ जांच नहीं की जाएगी। ऐसे फर्जी नाम की शिकायतों को कूड़ेदान में फेंक दिया जाएगा। इतना ही नहीं गुमनाम या फर्जी नाम से की गई शिकायत के आधार पर अभी जो जांच चल रही है उसे क्लोज कर दिया जाएगा। सेंट्रल विजलेंस कमीशन सीबीसी से सरकुलर जारी होने के बाद शासन ने इस बारे में निर्देश जारी कर दिया है।


डीजीपी डीएम अवस्थी ने पुलिस के सभी प्रमुख विभागों को सीबीसी के सरकुलर का रिफरेंस देकर चिट्ठी भेज दी है। पुलिस मुख्यालय के अनुसार सीबीसी से जारी सरकुलर में स्पष्ट कहा गया है कि अब अज्ञात या फर्जी नाम से की गई शिकायतों की जांच नहीं की जाएगी। पुलिस को पत्र के माध्यम से किसी के खिलाफ शिकायत मिलने पर सबसे पहले ये देखा जाएगा कि चिट्ठी भेजने वाले का नाम, पता और मोबाइल नंबर क्या है। शिकायत की जांच के पहले पुलिस शिकायतकर्ता का पता लगाएगी।


शिकायत में दिए मोबाइल नंबर पर कॉल किया जाएगा। मोबाइल नंबर बंद मिलने पर शिकायती पत्र में दिए पते पर जाकर शिकायत करने वाले की खोज की जाएगी। पत्र में उल्लेखित नाम और पता सही होने पर शिकायत करने वाले से पूछा जाएगा कि उनकी शिकायत के आधार पर जांच के दौरान उन्हें बयान लेने के लिए बुलाया जाएगा। उस समय वे उपस्थित होंगे या नहीं? शिकायतकर्ता ने अगर कह दिया कि वे बयान देने नहीं आएंगे तो शिकायत की जांच नहीं की जाएगी। शिकायती पत्र को नष्ट कर दिया जाएगा।


पुलिस और प्रशासनिक अफसरों के अनुसार विभागीय स्तर पर गोपनीय शिकायत करने की परंपरा है। विभाग में किसी से परेशानी होने पर वहीं के स्टाफ गोपनीय शिकायत करते हैं। फर्जी नाम से शिकायत कर वे किसी के खिलाफ भी जांच चालू करवा देते हैं। इससे संबंधित स्टाफ को अनावश्यक जांच के घेरे में फंसना पड़ता है। फर्जी शिकायत पर अब तक किसी तरह का अंकुश नहीं था, इस वजह से विभागों में शिकायतों की ही मोटी फाइल बन जाती है। अब ऐसा नहीं होगा।

लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या इससे भ्रष्ट अधिकारियों कर्मचारियों के हौसले बुलंद नहीं होंगे ? क्या वे इस जांच से बचने और इस आदेश को आधार बनाकर और अधिक भ्रष्ट नहीं हो जाएगें ? क्योंकि अधिकारियों कर्मचारियों के आर्थिक अनियमितता और भ्रष्टाचार की शिकायत आम जनता गुमनाम पत्र के द्वारा ही करती है ताकि जांच हो और दोषी पर कार्यवाही हो और वो बेकार के लफड़े से बचा रहे और भ्रष्टाचार करने वाले अधिकारी कर्मचारी की पूरी जानकारी विभाग के उच्च अधिकारियों तक पहुंच जाए ।
अब यदि शिकायत करने वाले की ही जांच पड़ताल होने लगे तो कौन शिकायत करेगा । ऐसे में भ्रष्ट आचरण वाले अधिकारी कर्मचारीयों पर से जांच का खतरा ही टल जाएगा । जबकि होना ये चाहिए कि भले ही फाईले मोटी हो जाए कोई बात नहीं लेकिन शिकायत की जांच तो हो । और ये भी सच है कि कोई बिना वजह किसी की शिकायत नहीं करता ।

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