योजना शुरू होने के बाद से नहीं हुआ मूल्यांकन , नाम महिला समूह का चला रहे कोई और ।
अंदरूनी जानकारी के अनुसार इस माह होना था सभी समूहों का मूल्यांकन लेकिन मूल्यांकन की बात सुन जिला अधिकारी के फूले हाथ पांव ।
दबंग न्यूज लाईव
बुधवार 16.12.2020
बिलासपुर – प्रदेश में महिलाओं एवं बच्चों के बेहतर स्वास्थ्य एवं पोषण के लिए 2009 से शुरू की गई रेडी टू ईट की योजना एक दशक बाद भी अपने लक्ष्य की पूर्ति करने में विफल साबित हो रही है । विभाग के साईट में दर्ज आंकडे को ही देखा जाए तो 2013-14 के बाद विभाग ने अपनी साईट को अपडेट नहीं किया है । 2013-14 के आंकड़े के मुताबिक प्रदेश में इस योजना के लिए 460 करोड़ के बजट प्रावधान किया गया है । उस समय इसके कुल हितग्राही 25.53लाख थे ।
योजना के अंतर्गत 06 माह से लेकर 06 साल के बच्चों के साथ ही गर्भवती महिला और शिशुवती महिलाओं का इस योजना का लाभ मिलना था जिससे इनका सुपोषण बेहतर हो सके । लेकिन नीति आयोग के द्वारा जारी नवीनतम आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में आज भी 37.60 प्रतिशत पांच साल से कम उम्र के बच्चे कुपोषित हैं वही महिलाओं में 41.50 प्रतिशत एनीमिया से पीड़ित हैं ।
ये अलग बात है कि महिलाओं और बच्चों को सुपोषित करते करते विभाग के अधिकारी और रेडी टू ईट बनाने वाले समूह जरूर सुपोषित हो गए । 2009 से जारी इस योजना का आज ग्यारह साल बाद भी विभाग मूल्यांकन नहीं करवाया पाया । हद तो ये हो गई कि इस योजना को चलाने में महिला समूह का नाम जरूर रहता है लेकिन चलाता कोई और है । ऐसा नहीं है कि इस बात की जानकारी विभाग के अधिकारियों को नहीं रहती लेकिन मलाई तो सब मिलकर खाते हैं ऐसे में किसी को कहीं कोई आपत्ति नहीं रहती ।
बिलासपुर जिले की बात करें तो यहां भी इस योजना की स्थिति कुछ बेहतर नहीं है । निम्न स्तर का रेडी टू ईट आंगनबाड़ी केन्द्रों में वितरण किया जा रहा है । जिले में ये आम बात है कि रेडी टू ईट की खेप गौशाला और पशु आहार केन्द्रों में पहुंच जाती है और इन पैकटों के हितग्राही पशु हो जाते हैं । कहीं कहीं तो पैेकेट मिला नहीं और हितग्राही उसे बेचने बाजार ले आते हैं ।
अंदरूनी सूत्रों से जो जानकारी प्राप्त हुई है उसके अनुसार विभाग ने पूरे प्रदेश के ऐसे एसएचजी समूहों का मूल्यांकन कराने की योजना बनाई थी जो रेडी टू ईट का निर्माण कर रहे हैं । जब इस बात की जानकारी बिलासपुर के डीपीओ को हुई तो उनके हाथ पैर फूल गए और उन्होंने इस मूल्यांकन पर रोक लगाने की भरपूर कोशिस करते हुए बिलासपुर जिले में इसे खटाई में डाल दिया जबकि पूरे प्रदेश में ऐसे समूहों का मूल्यांकन कार्य शुरू हो चुका है । सवाल ये उठता है कि आखिर बिलासपुर जिले को ही इस कार्य पर क्यों आपत्ति आई ? देखना होगा विभाग कितनी पारदर्शिता के साथ मूल्यांकन करवाता है और उसके मूल्यांकन के बाद क्या रिजल्ट सामने आते हैं ।