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special story – मूछों वाले श्रीराम I

रविवारीय स्पेशल में आज पढ़िए ’मुछों वाले श्रीराम ’ शिल्प और वास्तुकला की अद्वितीय और बेेमिसाल निर्माण । जिन्हें देखकर आपके भी मुंह से वाह निकले बिना नहीं रहेगा । हमारी कोशिश रहती है कि हर रविवार हम अपने पाठकों के लिए पर्यटन ,इतिहास और ऐसी ही धरोहर को सामने लाएं । आपके पास भी ऐसी कोई स्पेशल स्टोरी हो तो हमें अवश्य भेजें ।

दबंग न्यूज लाईव
रविवार 24.10.2021

R.  Shrivastava

पंडरिया नगर के मंदिरों में स्थापित देव प्रतिमाएं शिल्पकला की अद्वितीय और बेमिसाल वास्तु शिल्प को दर्शित करता है । यहां पर नगर की स्थापना से पूर्व भी कुछ मंदिरों का निर्माण हो चुका था । मंदिरों में नगर की पूर्व राजधानी कामठी ( मुकुटपुर परताबगढ़ ) , पचराही , बकेला आदि स्थानों से , नवमी से ग्यारहवीं शताब्दी के मध्य बने मंदिरों के ध्वस्त हुए स्थलों से देवप्रतिमाओं को लाया गया ,तथा नगर के विभिन्न मंदिरों में स्थापित करवाया गया ।

जनश्रुति के अनुसार नगर की आराध्य देवी मां महामाया ने राजा को स्वप्न में आदेश दिया कि मैं तुम्हारी कुलदेवी नगर के अमुक स्थान के टीले में एक बांस भीरा में निवासरत हूं । मेरा वहां भव्य मंदिर और उसके करीब अपना महल बनवाओ । जंगलों को साफ कर अपना नगर बसाओ । उद्यान , सरोवर , सराय , मन्दिर का निर्माण करवाओ ।


राजा ने स्वप्न में मिले आदेश का पालन किया । निर्देशित जगह की खुदाई की गई तब उस स्थान से मां महामाया की दिव्य प्रतिमा प्राप्त हुई । जिनकी विधिविधान से पूजा अर्चना कर उसी स्थान में स्थापित कर माताजी के मंदिर का निर्माण करवाया गया । नगर , उद्यान , तालाब , सराय आदि का निर्माण भी साथ साथ होने लगा ।


नगर के पश्चिम दिशा में स्थित जमात मन्दिर का इतिहास भी काफी प्राचीन है । जमात यानि कि लोगों के बैठने -जुड़ने का स्थान । इस मंदिर में दूर दूर के नागा साधुओं का आना जाना होता रहता था । मन्दिर के सामने एक सुंदर सरोवर था जो कमल पुष्पो से आच्छादित रहता था , सामने रसीले और उन्नत किस्म के आमो का विशाल उद्यान था । जमात मन्दिर दरअसल नागा साधुओं का एक विशाल अखाड़ा केंद्र था , जिसके बड़े बड़े मल्ल आसपास के रियासतों में अपने बल कौशल का प्रदर्शन करते थे ।


पंडरिया में स्थित जमात मन्दिर का वास्तुशिल्प अन्य मंदिरों की भांति ही है परंतु इस मंदिर में विराजित देव प्रतिमाओं की मूर्तिकला शिल्प भिन्न है । अन्य मंदिरों में स्थापित देव एवं देवियों के विग्रह का स्वरूप मथुरा मूर्तिकला शैली की है , जबकि जमात मन्दिर में स्थापित देवी देवताओं के विग्रह दक्षिण भारत के होयसल मूर्तिकला श्रेणी की है ।


दक्षिण भारत के अनेक स्थानों के मंदिरों में स्थापित भगवान राम की प्रतिमाएं ष्होयसल मूर्तिकला शिल्प की है जिसमे भगवान राम की मूछें उकेरी गई है । जमात मन्दिर में भी स्थापित भगवान श्रीराम का विग्रह भी मूछों वाला है । तथा इस मंदिर के आलों में लगी सभी देवमूर्तियाँ होयसल मूर्तिकला शैली की है


होयसल मूर्तिकला का विकास लगभग 1050 ईस्वी से 1300 ईस्वी के मध्य कर्नाटक के दक्षिण क्षेत्र के प्रारंभिक चालुक्य कालीन मंदिरों से हुआ है । मैसूर के क्षेत्र में विकसित होने के बाद ही इस शैली का विशिष्ठ रूप प्रदर्शित हुआ जिसे होयसल मूर्तिकला शैली के नाम से प्रसिद्धि मिली । अपनी प्रसिद्धि के चरमकाल में इस शैली की एक प्रमुख विशेषता स्थापत्य और व्यवस्थापन से जुड़ी हुई है ।


जमात मन्दिर में स्थापित देव प्रतिमाएं दुर्लभ एवं अद्वितीय है । इन प्रतिमाओं में श्रीहरि , लक्ष्मीनारायण , उमा महेश्वर , श्री गणेश और भगवान नरसिंह देव की प्रतिमाएं अनुपम और बेजोड़ हैं । इन स्थापित विग्रहों से प्रतीत होता है कि जमात मन्दिर में स्थापित देव प्रतिमाएं दक्षिण भारत से लाई गई होंगी ।

sanjeev shukla

Sanjeev Shukla DABANG NEWS LIVE Editor in chief 7000322152
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