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Sports Kit Ghotala – राज्य स्तरीय खेल में बिलासपुर के बच्चों ने बचाई नाक तो अधिकारियों ने कटा दी ।

ऐसे में कैसे निकलेंगे राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी ना जूते ना किट ।

बिलासपुर 25.09.2021 शनिवार – Sports Kit Ghotala राज्य में 21 वां राज्य स्तरीय खेल का आज समापन होना है । राज्य में बेमेतरा और डोंगरगढ़ में ये प्रतियोगिताएं आयोजित हो रही है । इन दोनों जगह बिलासपुर संभाग से चुने हुए 220 खिलाड़ी बिलासपुर की नाक बचाने और संभाग को जीत दिलाने पहुंचे हैं लेकिन बिलासपुर के शिक्षा विभाग ने पुरे राज्य में अपनी नाक कटवा ली है ।


बेमेतरा में बिलासपुर संभाग ने मिनी व्हालीवाल में फाईनल जीत कर संभाग का नाम रोशन किया लेकिन अधिकारियों ने सभी के सामने संभाग के साथ ही खिलाड़ियों को भी शर्मिंदा कर दिया है । संभाग के अधिकारियों ने 220 बच्चों की टीम तो भेज दी लेकिन ना तो खिलाड़ियों को किट दिया गया ना ही कोई अन्य सुविधा ऐसे में जब पुरे प्रदेश के अन्य संभाग के बच्चे नए जुते मोजे और किट में नजर आए वहीं बिलासपुर संभाग के बच्चे अपने स्कूली ड्रेस , सेंडल और चप्पल में दिखे कुछ बच्चों के पास पुराने किट मौजुद थे उन्होंने उसी से काम चलाया ।


राज्य स्तर पर प्रतिनिधि करने वाले खिलाड़ियों को मानसिक रूप से अधिकारियों ने मार्च पास्ट में ही हरा दिया था । ऐसे नकारा और गैरजिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही की जानी चाहिए कि उन्होंने खिलाड़ियों की मानसिकता को पहले ही तोड़ दिया है ।


बच्चों के एक किट Sports Kit की किमत 600 रू के लगभग आती है यदि 220 बच्चे संभाग से गए हैं तो उनके लिए मात्र एक लाख बत्तीस हजार ही किट में खर्च करने होते लेकिन करोड़ों का भ्रष्टाचार करने और नियम विरूद्ध हजारों काम करने वाले अधिकारी बच्चों के लिए उचित कार्य समय पर नहीं कर पाए ।

पुरे मामले को देखने से तो यही लगता है कि बिलासपुर संभाग में कहीं किट Sports Kit Ghotala घोटाला सामने ना आ जाए या ये भी हो सकता है कि किट सप्लायर से अधिकारियों की सेंटिग ही नहीं हो पाई हो इसलिए टेंडर ही नही मंगाया गया ।

शिक्षा विभाग के संयुक्त संचालक आर एस चौहान का कहना है कि -’’बड़ी मात्रा में किट खरीदना बिना टेंडर के संभव नहीं है और टेंडर अभी हुआ नहीं है । ’’
बेमेतरा में प्रतियोगिता में शामिल होने गए दल के एक सदस्य का कहना था – “बिना किट के बच्चों को लेकर आना हमारे लिए भी शर्मिंदगी का विषय है लेकिन क्या करें ये सब व्यवस्था करना तो अधिकारियों का काम है ।”

फिलहाल इतना तय है ओलपिंक में एक एक मेडल जितने पर हम जितने आत्ममुग्ध हो गए और एक खिलाड़ी पर करोड़ों लुटाने लगे इससे अच्छा ये होता है कि समय रहते अपने हर खिलाड़ी को खेल की सुविधा उपलब्ध करवाते तो शायद ओलपिंक और अंतराष्ट्रीय स्तर पर और अधिक मेडल जीत पाते और फिर हमें एकाध मेडल लेकर ही संतुष्ट नहीं होना पड़ता । और ये तब तक होते रहेगा जब हमारे खेल संगठनों पर खिलाड़ीयों का नही गैर खिलाड़ियों का दबदबा बना रहेगा जिसे ना खेल का पता ना खेल से मतलब क्योंकि इन्हें तो खेल से खेल करना होता है । 

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