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1960 की वो दौड़ जिसने मिल्खा सिंह को फलाईंग सिक्ख बना दिया ।

अपने पंद्रह भाई बहनों में से एक थे मिल्खा ।
पाकिस्तान में हुई उस दौड़ की कहानी जिसके बाद फ्लाइंग सिक्ख कहे जाने लगे मिल्खा सिंह

दबंग न्यूज लाईव
शनिवार 19.06.2021

संजीव शुक्ला

दिल्ली 1960 की एक दौड़ में मिल्खा सिंह ऐसे दौड़े की इस दौड़ के बाद उनका नाम ही मिल्खा सिंह की जगह फलाईग सिक्ख हो गया । इस दौड़ को जितने लोगों ने देखा उन्हें मिल्खा सिंह के पैर ही नहीं दिखे हवा से बात करते हुए भारत के इस महान धावक ने विश्व को बता दिया कि भारत किसी से कम नहीं है । आज हम सिर्फ उस दौड़ के कुछ विडियो और उस समय के संस्मरण या अखबारों से ही ये पढ़ सुन कर और देख कर रोमांचित हो जाते हैं । लेकिन इस 1960 में पाकिस्तान में हुई इस दौड़ ने पाकिस्तान के स्टेडियम सन्नाटा पसरा दिया  था ।


बात है सन 1960 की इस साल पाकिस्तान ने अपने यहां इंटरनेशनल एथलीट मीट का आयोजन किया और इसमें भाग लेने के लिए भारत को भी न्यौता दिया गया । भारत से मिल्खा सिंह का नाम भी इस प्रतियोगिता के लिए आया लेकिन बंटवारे का दर्द सहने वाले मिल्खा सिंह पाकिस्तान नहीं जाना चाहते थे । उस समय प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने मिल्खा सिंह को समझाया और उसके बाद वे राजी हुए फिर पाकिस्तान की जमीन पर मिल्खा ऐसे दौड़े कि सब इतिहास और रिकार्ड ध्वस्त हो गए ।


मिल्खा सिंह का जन्म 20 नवंबर 1929 को गोविंदपुरा (अब पाकिस्तान) में किसान परिवार में हुआ था.  वह अपने अपने मां-बाप की कुल 15 संतानों में से एक थे उनका परिवार विभाजन की त्रासदी का शिकार हो गया, उस दौरान उनके माता-पिता के साथ आठ भाई-बहन भी मारे गए. इस खौफनाक मंजर को देखने वाले मिल्खा सिंह से ट्रेन की महिला बोगी में छिपकर दिल्ली पहुंचे.

मिल्खा सिंह फलाईंग सिक्ख के नाम से मशहूर रहे. उनके इस नाम के पीछे की कहानी बेहद दिलचस्प है. उन्होंने 2016 में इंडिया टुडे को दिए इंटरव्यू में इसका खुलासा किया था. दरअसल,1960 में मिल्खा को पाकिस्तान की इंटरनेशनल एथलीट प्रतियोगिता में भाग लेने का न्योता मिला था. मिल्खा देश बंटवारे के गम को नहीं के गम को नहीं भुला पा रहे थे, इसलिए वह पाकिस्तान नहीं जाना चाहते थे. तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के समझाने पर वह पाकिस्तान जाने के लिए राजी हुए. पाकिस्तान में उस समय अब्दुल खालिक की तूती बोलती थी और वहां के वह सबसे तेज धावक थे.

प्रतियोगिता के दौरान लगभग 60000 पाकिस्तानी फैन्स अब्दुल खालिक का जोश बढ़ा रहे थे, लेकिन मिल्खा की रफ्तार के सामने खालिक टिक नहीं पाए थे. मिल्खा की जीत के बाद पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान ने उन्हें श्फ्लाइंग सिखश् का नाम दिया. और इसके बाद से वह फ्लाइंग सिख के नाम से छा गए.

एथलेटिक्स में भारत का परचम लहराने वाले मिल्खा सिंह ने दुनिया को अलविदा कह दिया. भारत के महान फर्राटा धावक मिल्खा सिंह का एक महीने तक कोरोना संक्रमण से जूझने के बाद शुक्रवार को निधन हो गया. पद्मश्री मिल्खा सिंह 91 साल के थे, उनके परिवार में उनके बेटे गोल्फर जीव मिल्खा सिंह और तीन बेटियां हैं. इससे पहले उनकी पत्नी और भारतीय वॉलीबॉल टीम की पूर्व कप्तान निर्मल कौर ने भी कोरोना संक्रमण के कारण दम तोड़ दिया था.

चार बार के एशियाई खेलों के स्वर्ण पदक विजेता मिल्खा ने 1958 राष्ट्रमंडल खेलों में भी स्वर्ण पदक हासिल किया था. उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन हालांकि 1960 के रोम ओलंपिक में था, जिसमें वह 400 मीटर फाइनल में चैथे स्थान पर रहे थे. उन्होंने 1956 और 1964 ओलंपिक में भी भारत का प्रतिनिधित्व किया. उन्हें 1959 मे पद्मश्री से नवाजा गया था.

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