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उदासीनता की पराकाष्ठा – स्टेट बैंक आफ इंडिया की कोटा शाखा ।

प्रताप सिंह की फाईल ही नहीं बैंक में , एक हफते मे रिकार्ड नहीं देख पाए । फिर इतने डिजिटाईलेशन का क्या मतलब ।

बैंक मैनेजर ने अपनी कई मजबूरी गिना दी लेकिन अच्छा हो यदि बैंक प्रबंधन उस गरीब महिला की भी मजबूरी समझ ले ।

 

दबंग न्यूज लाईव
सोमवार 12.04.2021

 

करगीरोड कोटा स्टेट बैंक अपनी कार्यशैली और ग्राहकों के प्रति अपनी उदासिनता को लेकर यूं ही बदनाम नहीं है । जब देश डिजिटाईलेशन की तरफ बढ़ रहा है और दुनिया की पूरी जानकारी एक क्लिक में कम्प्यूटर की स्क्रीन पर होती है ऐसे समय में एक ग्राहक की जानकारी निकालना इस बैंक के लिए इतना कठिन काम हो गया कि इसके लिए बरसो लग गए और अभी भी फाईल और ग्राहक की जानकारी यहां के बैंक मैनेजर नहीं जुटा पाए।

दबंग न्यूज लाईव ने 3 मार्च को एक खबर प्रकाशित की थी जिसके बाद बैंक प्रबंधन ने तीन दिन में मामले को देखकर समस्या के समाधान की बात कही थी लेकिन दस दिन बाद भी इस दिशा में एक कदम भी बैंक ने नहीं बढ़ाए हैं । पूरा मामला है स्टेट बैंक की कोटा शाखा का । यहां प्रताप सिंह नेताम का खाता है जिसका नम्बर है 32579649040। प्रताप सिंह अचानकमार के रहने वाले थे जो कि बैंक से लगभग 25 किमी दूर है , थे है इसलिए कहा जा रहा है कि 2019 की 23 फरवरी को प्रताप सिंह की कैंसर के चलते मृत्यु हो गई ।

 

 

प्रताप सिंह के ईलाज के लिए जब प्रदेश में डाक्टर रमन सिंह मुख्यमंत्री थे उस समय उन्होंने प्रताप सिंह के ईलाज के लिए पचास हजार रूपए की सहायता राशि दी थी लेकिन विभागों की फाईलों से होते हुए जब ये राशि प्रताप सिंह के खाते में आई तब तक प्रताप सिंह इस दुनिया से विदा ले चुके थे ।

ऐसे में प्रताप सिंह के खाते की नामिनी उनकी पत्नि लीलाबाई को बैंक प्रताप सिंह के खाते की राशि अदा कर देती । लेकिन खेल यहीं से शुरू हुआ । जिस पैसे को पाने के बाद भी प्रताप सिंह अपने ईलाज के लिए खर्च नहीं कर सका अब उस पैसे को पाने के लिए उसकी पत्नि कई बार और बार बार बैंक के चक्कर लगा रही है लेकिन बैंक की एक गलती की सजा लीला बाई को भुगतनी पड़ रही है ।

बैंक इस मामले में इतना उदासीन निकला कि अपने ग्राहक को ईलाज के लिए मिले सरकारी सहायता राशि को समय पर उसे नहीं दे पाया । हद तो ये हो गई है कि प्रताप सिंह की मृत्यु के बाद उसकी पत्नि लीलाबाई जो कि उस खाते की नामिनी है को भी बैंक प्रताप सिंह की जमा पूंजी नहीं दिला पा रहा है । बैंक के उच्च अधिकारी भी कुछ कह नहीं रहे हैं ।


बैंक मैनेजर से बात करने पर उन्होंने अपनी मजबुरी गिना दी कि बैंक में प्रताप सिंह की फाईल नहीं है । वो आडिट के बाद जबलपुर चले गई है वहां लिखा गया है फाईल भेजने के लिए अब जब वहां से कुछ आएगा या पता चलेगा उसके बाद ही कुछ किया जा सकता है ।
सहीं बात है बैंक मैनेजर की कई मजबूरी है लेकिन बैंक एक आदिवासी गरीब महिला जो उनके शाखा से 25 किमी दूर जंगलों में रहती है उसकी एक भी मजबूरी नहीं समझ पा रही है । बेैंक जिस प्रकार से इस मामले में उदासीन हो चला है उससे लगता नहीं लीलाबाई की समस्या जल्द दूर होगी । यदि बैंक अपने ग्राहकों की वाकई परवाह करती है तो इस विकट परिस्थिति में लीलाबाई के केस को प्राथमिकता देते हुए उसकी समस्या का समाधान कर सकती है ।

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