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पंचायत फंड के और भी है गिद्ध । भ्रष्टाचार की मलाई खाने वाले प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष सभी पक्षों की होनी चाहिए जांच ।

जो भ्रष्टाचार जांच में सामने आता है वो आडिट के समय क्यों नहीं  ?

दबंग न्यूज लाईव
शुक्रवार 07.09.2022

कोटा / बिलासपुर – पंचायत के फंड में आर्थिक अनियमितता के मामले हर समय सामने आते रहते हैं । और जैसे ही ये मामला सामने आता सबसे पहले जो व्यक्ति दोषी के रूप में सामने आता है वो होता है पंचायत का सचिव । वो सचिव जो पंद्रह साल से काम करते हुए भी नियमित नहीं हो पाता , वो सचिव जिसके भविष्य की कोई गांरटी नहीं होती , वो सचिव जो सालों से  कम पैसे में अपना जीवन यापन कर रहा होता है और वो सचिव जिसे कभी भी किसी भी मामले में निलंबित करके मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है ।


ये सच है कि पंचायत में होने वाली अनियमितता की जवाबदारी सचिव पर होती है लेकिन क्या सिर्फ सचिव ही पूरे मामले में दोषी होता है ? जो आर्थिक अनियमितता जांच के बाद सामने आती है वो आडिट के समय क्यों सामने नहीं आती ? क्या आडिटर को आडिट करते समय ये गड़बड़ी नहीं दिखती ? यदि नहीं दिखती तो फिर किस बात का आडिटर और कैसा आडिट ? और यदि दिखती है तो फिर होता क्या है ? क्या ऐसे आडिटर की जांच नहीं होनी चाहिए

पंचायत में होने वाले निर्माण कार्यों के बिल तभी निकलते हैं जब उस कार्य का मूल्यांकन और सत्यापन हो जाता है । और ये मूल्यांकन , सत्यापन करता है इंजिनियर । तो क्या इंजिनियर उस समय गलत सत्यापन और मूल्यांकन करता है ? एसडीओ क्या करता है ? जनपद के बाकी जिम्मेदार अधिकारी क्या करते हैं ?

कोटा जनपद के लिटिया ग्राम पंचायत से कल जो मामला सामने आया उसने कई सवाल सामने ला दिए । पंचायत में अलग अलग समय में पदस्थ रहे सचिवों केशव यादव और पोलो दास को आर्थिक अनियमितता के चलते निलंबित कर दिया गया । आगे ये भी देखते रहिएगा कि कुछ समय बाद लेन देन करके इन्हें बहाल कर दिया जाएगा ।

 

लिटिया पंचायत में पिछले कई साल से भ्रष्टाचार की शिकायत हो रही थी , जांच हुई तो आर्थिक अनियमितता का मामला सामने आया और दो सचिवों को जिनके कार्यकाल का ये मामला था उन्हें निलंबित कर दिया गया । इस जांच को थोड़ा और विस्तार देना चाहिए इसमें सरपंच के साथ ही यहां के करारोपण अधिकारी , पंचायत का आडिट करने वाले आडिटर , बिना स्थल जांच के मूल्यांकन सत्यापन करने वाले इंजिनियर ,एसडीओ और बिल पास करने वालों की भी जांच होनी चाहिए ।

आर्थिक अनियमितता में कार्यवाही होनी चाहिए लेकिन क्या सिर्फ एक पक्ष पर ? कार्यवाही और जांच के घेरे में हर वो अधिकारी आना चाहिए जो इससे जुड़ा हुआ है क्योंकि जनपद में हर काम का कमीशन बंधा हुआ है बिना कमीशन के यहां कोई काम नहीं होता ऐसे में काम कराने के लिए सचिव सरपंच को चढ़ावा चढ़ाना होता ही है और इस चढ़ावे का कोई फंड होता नहीं मतलब इसे एडजेस्ट करना होता है । एडजेस्ट बहुत सारे कामों में लगे पैसों का करना होता है जिसमें कमीशन , नेताओं के दौरों पर बसों का इंतजाम , गाहे बगाहे कई आयोजन । इसलिए पंचायत में भ्रष्टाचार रोकने के पहले उन हर टेबल के भ्रष्टाचार को रोकना होगा जहां पंचायत के फंड का चढ़ावा चढ़ता है क्योंकि ये फंड गांव के विकास और मूलभूत आवश्यकताओं के लिए आता है ।

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