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सागौन तस्करों पर अभी भी पुख्ता कार्यवाही नहीं , वन विभाग की छापा टीम सवालों के घेरे में ।

एक मकान में अवैध रूप से चल रहा था सागौन फर्नीचर बनाने का काम ।

दबंग न्यूज लाईव
गुरूवार 18.05.2023

करगीरोड कोटा – तेरह अप्रेल को कोटा वन विभाग ने एक सनसनीखेज मामले में छापेमारी की । मामला था कोटा के फिरंगीपारा के एक मकान में सागौन लकड़ी से अवैध रूप से फर्नीचर बनाने का । छापे के बाद विभाग को यहां से एक दो नहीं बड़ी मात्रा में सागौन की सिलपट और फर्नीचर बरामद हुआ लेकिन मजे की बात विभाग के हाथ ना तो फर्नीचर बनाने के औजार आए और ना ही फर्नीचर बनाने वाले । यहां तक कि छापेमारी वाली टीम ने ना तो मकान को सील किया ना ही वहां के सीसीटीव्ही कैमरे की जांच की और ना ही बाजू में रहने वाले दुसरे किराएदार के बारे में जानकारी ली ।


वन विभाग की इस अजीबो गरीब कार्यवाही के बाद अब विभाग की छापेमारी टीम ही सवालों के घेरे में है और ये संदेह उठने लगा है कि छापेमारी टीम के ही किसी सदस्य ने ये खबर लीक कर दी थी ऐसे में छापेमारी टीम के सभी कर्मचारियों के मोबाईल के काल डिटेल निकालकर जांच करना चाहिए कि इन्होंने छापेमारी के पहले और बाद में किस किस से बात की है ।


छापेमार कार्यवाही के पांच दिन बाद भी विभाग के अधिकारी कर्मचारी कागजी कार्यवाही में ही उलझे हुए हैं । अभी तक इनके हाथ मकान मालिक , किराएदार या बढ़ई तक नहीं पहुंच पाए हैं । विभाग को इतना पता चला है कि मकान रायपुर में रहने वाले किसी दिनेश पाण्डेय का है लेकिन उन्होंने किसको किराए पर दिया इसकी जानकारी या तो विभाग के पास नहीं है या इसका खुलासा वन विभाग नहीं कर पा रहा है । वन विभाग की टीम ने जिस मकान में छापेमारी की थी वहां सीसीटीव्ही कैमरा भी लगा था ऐसे में सवाल ये उठता है कि विभाग ने इस कैमरे के फुटेज क्यों चेक नहीं किए ?


इन पांच दिनों में वन विभाग की कार्यवाही देखकर छापेमारी करने गई टीम पर ही कई सवाल खड़े किए जा रहे हैं । सबसे बड़ा सवाल यही है कि वन विभाग को शहर के बीचों बीच स्थित इतने बड़े कारखाने की जानकारी कैसे नहीं हो पाई ? विभाग को ये कैसे नहीं पता चला कि उसके किस बीट से सागौन की कटाई की जा रही है ? और वन विभाग के बैरियर को पार करते हुए ये लकड़ी शहर के बीचो बीच कैसे पहुंच गई ?


वन विभाग की छापेमारी टीम पर शक इसलिए भी जताया जा रहा है क्योंकि वन विभाग की टीम जो कहानी बता रही है वो किसी के गले नहीं उतर रही । वन विभाग की टीम जिस मकान में पहुंची थी वहां आने जाने का सिर्फ एक ही गेट है । गेट से घुसने के बाद बड़ा सा आंगन है और फिर मकान है जिसमें सामने की तरफ दो दरवाजे हैं । एक तरफ के दरवाजे में कोई किराएदार रहता है और उसी से लगे दुसरे मकान में ये गोरखधंधा चल रहा था ।


वन विभाग की टीम ने खुले मकान और आंगन से ये पूरा माल जप्त किया जाना बताया है । यहां उस समय ना तो काई आदमी था और ना ही किसी प्रकार का औजार तो क्या वन विभाग की छापे की खबर पहले ही लीक हो चुकी थी ? विभाग ने अभी तक मकान मालिक का बयान लेकर किराएदार का नाम क्यों नहीं पूछा ? और सबसे गंभीर लापरवाही जिस मकान से पूरा माल जप्त किया गया उस मकान को सील क्यों नहीं किया गया ?


विभाग को इस गंभीर मामले की पूरी जांच करनी चाहिए और छापेमारी करने वाले सभी कर्मचारियों के फोन के काल डिटेल भी निकलवाने चाहिए जिससे ये पता चल सके कि इस टीम के लोगों ने इस दौरान किस किस से बात की और क्या इसमें कोई संदिग्ध काल भी है क्या ?
इस संबंध में वन विभाग के डीएफओ कुमार निशांत का कहना था – ’’पूरे मामले की जांच चल रही है । बढ़ई ने राजेश यादव का नाम लिया जिसके लिए सम्मन जारी किया जा रहा है । पूरे मामले की जांच डिप्टी रेंजर कर रहे हैं ।

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