
कैसे बन गया मुर्गे का मंदिर और कौन था मुर्गा जिसने बारातियों को बना दिया पत्थर I
दबंग न्यूज लाईव समचारों और खबरों के दिगर भी कुछ ऐसी जानकारियां अपने पाठकों तक पहुंचाते रहती है जो अदभूत और रोमांचक होती है । इन खबरों को पाठको का अच्छा प्रतिसाद भी मिलता है तथा नियमित प्रकाशित करने की मांग रहती है ।
आज हम एक ऐसी ही जगह के बारे में आपको बताने जा रहे हैं । इस जगह से पूरी कहानी को कलमबद्ध किया है पंडरिया के राजेश श्रीवास्तव ने । कुकरा पाठ और बाराती पाठ की कहानी अदभूत और रोमांचित करने वाली है । समय मिले तो आप भी घुम आईए फिलहाल कहानी का मजा लीजिए ।
दबंग न्यूज लाईव
शुक्रवार 09.07.2021

यूं तो आपने कई प्रसिद्ध मदिरों के नाम सुने होंगे । अपने यहां मंदिरों का इतिहास काफी पुराना है और मंदिरों से आस्था की कई कहानियां भी प्रचलित हैं । आपने अभी तक देवी देवताओं के मंदिरों के बारे में ही सुना होगा कभी कभी किसी राजनैतिक हस्ती ,फिल्म स्टार के मंदिरों के भी समचारा मिलते हैं लेकिन आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे है जो शायद पूरे देश में इकलौता होगा और इसकी कहानी भी अपने आप में मजेदार है ।
कबीरधाम जिले का पंडरिया तहसील पूर्व में क्षेत्र की सबसे बड़ी जमींदारी थी । इस क्षेत्र में प्रकृति हमेशा से अपने सौंदर्य , पुरावैभव और विविधताओं से लोगों को आकर्षित करता आई है । पंडरिया नगर के आसपास यूं तो अनेकों पर्यटन स्थल हैं जहां पर्यटक अक्सर घूमने जाते हैं लेकिन बम्हन्दई का मंदिर , सिंहलदेव का मंदिर , बुचीपारा की गुफाएं और कुकरा पाठ पयर्टन की दृष्टि से काफी आकर्षक है । यह सभी स्थान एक दूसरे से सम्बंधित इतिहास लिए हुए है ।
जनश्रुति के अनुसार तब धरती पर छः महीने की रात थी , पहाड़ों के ऊपर स्थित किले में माता बम्हन्दई का निवास था । उनकी शादी समीप के रियासत के राजा सिंहलदेव के साथ तय हुई थी । सारी तैयारियां पूरी हो चुकी थी , विधान यह था कि रात्रि में ही फेरे सम्पन्न हो जाये । ज्योतिषियों ने विचारा था कि भोर होने से पहले वैवाहिक रस्में पूरी हो जाने से दूल्हा -दुल्हन सहित सभी जीव जंतु जो इसमें शामिल होते वे अमर हो जाते ..!
तय समय पर सिंहलदेव की बारात बम्हनदई जाने के लिए निकली . सभी बाराती हाथी घोड़े पालकी आदि सवारियों के जरिये बम्हन्दई बारात में जाने लगे । राजा सिंहलदेव का एक भांजा था जिससे राजा रुष्ट थे और उन्होंने उसे शादी का न्यौता नही दिया था ! सिंहलदेव का भांजा इससे रुष्ट हो गया और बदला लेने के उद्देश्य से मार्ग में छुपकर बैठ गया । बाराती अपनी मस्ती में झूमते गाते दूल्हे के साथ आगे बढ़ रहे थे । मार्ग में एक जगह वे सुस्ताने के लिए रुक गए , राजा के भांजे ने उपयुक्त अवसर देखा और मुर्गे की आवाज में भोर का बांग दे दिया । बारात के साथ चल रहे दूल्हे सहित सभी लोग स्तब्ध हो गए , उन्हें लगा कि वे तो मार्ग में ही हैं और भोर भी होने वाला है , ऐसे में प्रभात होने से पूर्व किसी भी स्थिति में शादी हो पाना सम्भव नही था ।
अतः भ्रमवश विधि के विधान के आगे नतमस्तक होकर सभी लोग वहां रुक गए । इधर समय पर बारात नही पहुंचने से कन्या पक्ष में बेचैनी छा गई । समय बीतता गया और अंततः सुबह हो गई .. शादी का मुहूर्त निकल चुका था । हताश निराश माता बम्हन्दई सुरंग के रास्ते माँ नर्मदा के शरण में चली गई ..सिंहलदेव सहित सारे बाराती पत्थरों में तब्दील हो गए ..!
भांजे को अपने किये इस कृत्य से दुख हुआ और वह एक गुफा में मुर्गे का रूप लेकर पश्चाताप करता हुआ निवास करने लगा । कुकरा पाठ नामक जगह में आज पहाड़ के ऊपर एक गुफा में मुर्गे के मूर्ति के रूप में वह स्थापित हैं , जहां आज ग्रामीण जन नवरात्रि के अवसर पर ज्योति प्रज्ज्वलित करते हैं और उनकी पूजा आराधना करते हैं । इस क्षेत्र में माता बम्हन्दई की महिमा को लोग बहुत मानते हैं । ग्राम झिरिया के पहाड़ पर स्थित माता का धाम इस क्षेत्र में जन आस्था का एक महत्वपूर्ण स्थल है ।
पर्वतों में कई स्थानों पर हल्दी के रंगों जैसा पीलापन छाया है जिसे लोग माता की शादी का हरिद्रा लेपन मानते है । यहां ऊपर में एक छोटा सा प्राकृतिक कुंड था जिसमे बारहों महीने निर्मल और शीतल जल उपलब्ध रहता था । कुंड को चौड़ा करने के लिए इसे फोड़ा गया तब यहां का सारा जल नीचे उतर गया । इस जगह पर लोगों ने समय समय पर अद्भुत प्रकाश के दर्शन भी किए हैं । नवरात्रि में माता की सवारी शेर के दर्शन भाग्यशाली लोगों को होते रहता है ।
समीप के ग्राम झिरिया में एक “ बीहर “ नामक तालाब के बीच से आज भी ताजा धोए हुये कोदो के छिलके निकलते हैं जो आज भी जनमानस में कौतूहल का विषय है । किवदंती है कि माता के धाम से अमरकंटक तक सुरंग मार्ग है। इस स्थान में झिरिया , बुचीपारा , सिंहलदेव कुकरा पाठ आदि कितने स्थान हैं जो सुरंग मार्ग से जुड़े हुए है । प्रसिद्ध है कि पंडरिया महामाया देवी के पुजारी श्री सिद्ध मौनी महराज ने बम्हन्दई माता के दरबार मे तपस्या की थी , उन्हें परकाया प्रवेश की सिद्धि यहीं प्राप्त हुई थी ।
जन आस्था से जुड़ा यह स्थल अपने विकसित होने का एक लंबे समय से प्रतीक्षा कर रहा है। शासन प्रशासन से भी अनकों बार मांग की गई है .. इस पर्यटन स्थल के विकसित हो जाने से निश्चित ही इस क्षेत्र का विकास हो सकता है । आसपास में बदौरा का शताब्दी वन , बुचिपारा के सुरंगों की भूलभुलैया , लक्ष्मणपांव , सिहलदेव की पहाड़ी , कुकरा पाठ आदि बहुत से स्थान हैं , जहां आकर आपको आत्मिक अनुभूति प्राप्त होती है , मन प्रसन्नता से झूम उठता है और बार बार आने को जी चाहता है ..!!