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सात दिन में क्वारंटाईन सेंटर से छोड़ने का मामला पार्ट 02

अधिकारी लगे बचाने , बनाने लगे कई बहाने ।

कोटा जनपद के लिटिया ग्राम पंचायत ने नियमों की उड़ाई धज्जियां सात दिन में छोड़ दिए क्वांरटाईन से लोगों को ।

दबंग न्यूज लाईव
सोमवार 25.05.2020

करगीरोड – क्वारंटाईन सेंटर को लेकर सरकार की गाईड लाईन एकदम साफ है कि वहां बाहर से आने वाले मजूदरों , श्रमिको और अन्य लोगों को 14 दिन रखा जाए उसके बाद वहां से छोड़ा जाए तथा इसके बाद भी 14 दिन वह व्यक्ति होम आईसोलेशन में रहेगा । लेकिन जनपद पंचायत कोटा के एक पंचायत में इसके बिल्कूल उल्टा चल रहा है यहां की लिटिया पंचायत में तीन क्वांरटाईन सेंटर बनाए गए है प्राथमिक शाला मोहंदी , प्राथमिक शाला बेड़ापाट और लिटिया में ।

दबंग न्यूज लाईव को ये जानकारी प्राप्त हुई थी कि यहां सात दिन में लोगों को क्वारंटाईन सेंटर से छोड़ दिया जा रहा है । मामले की सत्यता जानने के लिए हम लिटिया के मोहंदी पहुंचे तो बात सच निकली यहां के उपसरपंच , पंच और उस व्यक्ति ने जिसे सात दिन में छोड़ा गया था उसने इस बात की पुष्टि की कि उन्हें सात दिन में ही छोड़ दिया गया और इसके पिछे सचिव और सरपंच पति का सामान्य सा गणित था कि सात दिन यहा आने में लगे और सात दिन यहां रख लिए इसलिए 14 दिन हो गए ।


इसके बाद पूरे मामले की खबर प्रकाशित की गई लेकिन जिम्मेदार अधिकारियों ने इस मामले में संज्ञान लेने की बजाय पूरे मामले में लिपापोती करने मे लग गए और पंचायत को बचाने के लिए एक से एक तर्क देने लगे । यहां तक कि जनपद के जिम्मेदार अधिकारी ने हमसे ये भी कह दिया कि तथ्यों के साथ खबर छापे कुछ भी नहीं । पंचनामा है आपके ? उस व्यक्ति ने कहा है आपसे ? हमने उन्हें वहां के विडियो दिए फिर एक जांच टीम भेजी गई जांच टीम ने क्या जांच किया किसी को नही पता क्योंकि गांव के उपसरपंच पंच किसी को नहीं मालूम की कोई जांच टीम आई थी ।


इस बीच अधिकारी ने हमें एक पंचनामा भेजा जिसमे श्रमिकों के आने और क्वांरटाईन सेंटर से छोड़ने की जानकारी थी । लेकिन ये पंचनामा मोहंदी का नहीं बेड़ापाट के क्वांरटाईन सेटर का था । जिसमें सत्रह तारीख को तीन लोगों को क्वारंटाईन सेंटर से छोड़ने की जानकारी थी । सवाल हमारी खबर पर भी अधिकारी ने उठाए थे इसलिए बेड़ापाट का भी दौरा किया गया और हालात की जानकारी ली गई । जिस पंचनामें को लेकर अधिकारी हमसे सवाल जवाब कर रहे थे अब उस पंचनामें की हकीकत सुनिए । जो वहंा के पंच , रसोईया और 17 तारीख को छोड़े गए दोनों श्रमिको ने बताई ।

पंच आशिष का कहना था – आठ तारीख को भागीरथी का परिवार गांव आया था नौ तारीख को उन्हें कोटा सीएचसी ले जाया गया और फिर यहां रखा गया 17 तारीख को सरपंच और सचिव ने एक पंचनामा बनाया और उन्हें छोड़ दिया । हमने बोला तो सरपंच पति और सचिव का कहना था ऐसा ही आदेश उपर से है । यहां की रसोईया का भी यही कहना था कि पांच सात दिन ये लोग यहां थे ।

भागीरथी का कहना था – हम लोग खंडवा से आठ तारीख की रात को दस साढ़े दस बजे गांव पहुंचे । सरपंच सचिव किसी ने फोन नहीं उठाया तो अपने घर के बरामदे में ही रात काटे फिर नौ तारीख की सुबह कोटा अस्पताल गए और उसके बाद यहां स्कूल में रहे । 17 तारीख को हमें यहां से छोड़ दिया गया । हम बोले अभी तो टाईम नहीं हुआ है गांव वाले क्या बोलेंगे तो सरपंच पति और सचिव का कहना था तुम लोग ठीक हो कोई कुछ नहीं बोलेगा जनपद से ऐसा ही आदेश है । ऐसा ही कहना भागीरथी की पत्नि दुखिया बाई का भी है ।


याने इतने गभीर मामले में भी जिम्मेदार अधिकारी संज्ञान लेने और अपने पंचायतों को समझाने छोड़ मीडिया से सवाल कर रहे कि आप कैसे खबर प्रकाशित कर रहे पंचनामा है ? अब कैसे बताएं कि मीडिया को किसी पंचनामें की जरूरत नहीं होती । हम कागजी सबूतों और पीड़ितों के बयान के उपर ही खबर चलाते और प्रकाशित करते हैं । फिर पंचनामे कैसे तैयार किए जाते हैं ये अधिकारियों से बेहतर कोैन जान सकता है।

और यदि ऐसा पंचनामा जो गांव के पंच , रसोईये और स्वीपर के द्वारा बनाकर क्वारंटाईन सेंटर से सात दिन में लोगों को छोड़ा जा सकता है और ये जायज है तो फिर सभी पंचायतों को ऐसे ही पंचनामें बनवा कर सात दिन मे छोड़ देना चाहिए क्यों 14 दिन तक पंचायत का बजट खर्च कर रहे । जब एक पंचायत पर कोई कार्यवाही नहीं हुई ,सब जायज है तो बाकी पंचायतों के लिए भी यही नियम होगा । शायद ?

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