छत्तीसगढ़ में वन्य जीवों पर छाया संकट कहीं बाघ , कहीं तेदुवा तो कहीं गौर का शिकार ।
विभागीय अधिकारी घटना के बाद जांच के नाम अपनी पीठ थपथपाने से बाज नहीं आते ।

दबंग न्यूज लाईव
बुधवार 17.12.2025
Sanjeev Shukla
बिलासपुर – छत्तीसगढ़ में एक तरफ बेहिसाब जंगल काटे जा रहे वहीं दूसरी तरफ अवैध शिकारी भी सक्रिय हैं । पिछले कुछ दिनों में छत्तीसगढ़ के अलग अलग हिस्सों से बाघ ,तेंदुवे और गौर के शिकार के मामले सामने आए हैं जिसने ये साबित करने का काम किया है कि छत्तीसगढ़ में अब वन्य जीवों पर भारी संकट छा गया है । वन विभाग के भारी भरकम अमले के बाद भी अवैध शिकार के मामले रूक नहीं रहे हैं या ये कहा जाए कि वन्य सुरक्षा अधिनियम का कड़ाई से पालन नहीं हो रहा है ।

दो दिन पहले ही सूरजपुर जिले के छुई क्षेत्र में एक बाघ मृत अवस्था में मिला । पहली नजर में ही ये शिकार का मामला लगता है । शिकारियों ने बाघ के दांत और नाखून उखाड़ लिए हैं । बाघ के शरीर में कई जगह गंभीर चोटों के निशान हैं । इसके बाद डोगरगढ़ क्षेत्र में एक तेंदुवे का अवैध शिकार कर दिया गया । शिकारियों ने तेंदुवे के पैरों के नाखून और दांत उखाड़ ले गए ।

इसके बाद कबीरधाम जिले के भोरमदेव अभ्यारण से वन्य प्राणी संरक्षण को झकझोर देने वाला एक बेहद गंभीर और शर्मनाक मामला सामने आया है। बोड़ला विकासखंड अंतर्गत धवईपानी बिट के धवईपानी क्षेत्र में शिकारियों ने जंगल में अवैध रूप से विद्युत करंट फैलाकर दो दुर्लभ एवं संरक्षित इंडियन बाइसन (गौर) की बेरहमी से हत्या कर दी।

इस घटना ने न केवल वन विभाग में हड़कंप मचा दिया है, बल्कि राज्य की वन्य प्राणी सुरक्षा व्यवस्था की पोल भी खोल दी है।प्राप्त जानकारी के अनुसार, शिकारियों ने सुनियोजित तरीके से जंगल क्षेत्र में करंट युक्त तार बिछाकर बाइसन को निशाना बनाया। करंट की चपेट में आते ही दोनों गौर की मौके पर ही दर्दनाक मौत हो गई। घटना की सूचना मिलते ही वन मंडल अधिकारी सहित विभागीय अमला मौके पर पहुंचा और क्षेत्र की घेराबंदी कर जांच शुरू की गई।मामले की गंभीरता को देखते हुए वन विभाग ने फोरेंसिक टीम और डॉग स्क्वॉड को जांच में शामिल किया है।

प्रारंभिक जांच के आधार पर दो संदिग्धों को हिरासत में लेकर पूछताछ की जा रही है। विभाग को आशंका है कि यह वारदात किसी संगठित शिकार गिरोह द्वारा अंजाम दी गई है, जो लंबे समय से अभ्यारण क्षेत्र में सक्रिय हो सकता है।
गंभीर सवाल इस बात पर उठ रहे हैं कि पिछले मात्र दो महीनों में चार बाइसन की मौत हो चुकी है। महीने भर पहले भोरमदेव अभ्यारण परिक्षेत्र चिल्फी के बहनखोदारा दृ सालेहवारा क्षेत्र में भी करंट से दो बाइसन की मौत हुई थी, और अब धवईपानी में दो और गौर का मारा जाना यह साबित करता है कि अभ्यारण क्षेत्र में गश्त, निगरानी और विभागीय दबाव पूरी तरह कमजोर पड़ चुका है।करोड़ों रुपये के बजट और योजनाओं के बावजूद संरक्षित वन्य क्षेत्र में शिकार की घटनाओं का लगातार सामने आना वन विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर प्रश्नचिह्न खड़े करता है।
वन्य जीव प्रेमियों और पर्यावरण संगठनों में इस घटना को लेकर भारी आक्रोश है। विशेषज्ञों का कहना है कि इंडियन बाइसन जैसे दुर्लभ और संरक्षित वन्य प्राणी का शिकार जैव विविधता के लिए अपूरणीय क्षति है, जिसकी भरपाई किसी भी स्तर पर संभव नहीं है।हालांकि विभाग का दावा है कि संदेह के आधार पर अपराधियों तक जल्द पहुंचा जाएगा, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि जिन वन्य प्राणियों की जान जा चुकी है, उनकी भरपाई कैसे होगी? क्या बार-बार हो रही इन घटनाओं के बाद भी अभ्यारण की सुरक्षा व्यवस्था में कोई ठोस सुधार होगा, या फिर भोरमदेव अभ्यारण ऐसे ही शिकारियों के लिए खुला मैदान बना रहेगा?यह मामला अब केवल वन्य प्राणी शिकार का नहीं, बल्कि वन संरक्षण व्यवस्था की विफलता और जवाबदेही तय करने की राष्ट्रीय स्तर की जरूरत बन चुका है।



