उच्च शिक्षा विभाग ने प्रदेश के महाविद्यालयों के शिक्षकों की सातवें वेतन के एरियर्स की जमा राशि देने की सहमती दी ।
उच्च शिक्षा विभाग की नासमझी से सरकार के डूबे 152 करोड़ ।
केन्द्र बोलता रहा रिएम्बस करें उच्च शिक्षा विभाग केन्द्रांश मांगता रह गया ।
दबंग न्यूज लाईव
शुक्रवार 28.06.2024
Sanjeev Shukla
बिलासपुर – छत्तीसगढ़ के उच्च शिक्षा विभाग के नासमझ अधिकारियों का खामियाजा राज्य सरकार को भुगतना पड़ रहा है । उच्च शिक्षा विभाग के अधिकारियों की लेट लतीफी और गलत निर्णय ने सरकार के लगभग 152 करोड की राशि का भट्टा बिठा दिया है ।
लेकिन प्रदेश के महाविद्यालयों के शिक्षकों के लिए राहत की बात ये है कि उनके सातवें वेतन मान के एरियर्स के राज्य शासन के अंश की जो राशि के-डिपाजिट में जमा थी और जिसके आहरण पर रोक लगी थी उसे विमुक्त करने के लिए उच्च शिक्षा विभाग ने सहमती प्रदान कर दी है और वित विभाग ने भी इसके लिए अपनी सहमती दे दी है , लेकिन दुखद ये है कि केन्द्र से जो राशि मिलनी थी वो अब नहीं मिल पाएगी ।
इस पूरे मामले को समझने के लिए लगभग छह से सात साल पिछे जाना होगा । जब देश में सातवां वेतन मान लागू हुआ तो उसमें प्रदेश के सभी शासकीय महाविद्यालय के साथ ही अनुदान प्राप्त महाविद्यालय के शिक्षक और प्राध्यापक भी इसके दायरे में आ गए । सातवें वेतन मान के बढ़े हुए एरियर्स की बढ़ी राशि में से आधी राशी केन्द्र सरकार को देना था और आधी राशि राज्य सरकार को ।
लेकिन केन्द्र सरकार ने अपना हिस्सा देने के लिए एक शर्त ये रख दी थी कि राज्य सरकार पहले पूरा भुगतान कर दे उसके बाद रिएम्बश के लिए आवेदन करे उसके बाद केन्द्र अपना केन्द्रांश देगी और पूरा लोचा इसी के बीच हुआ लगता है उच्च शिक्षा विभाग इस शर्त को समझ नहीं पाया या हल्के मे लेता रहा और एरियर्स देने के पहले केन्द्र से लगातार केन्द्रांश की मांग करता रहा जो कि केन्द्र ने नहीं दिया ।
ऐसे में उच्च शिक्षा विभाग ने भी राज्य सरकार के द्वारा दिए जाने वाले राज्यांश के एरियर्स की राशि में से इनकम टैक्स और जीपीएफ की राशि काटते हुए बाकी की राशि के – डिपॉजीट में जमा कर दी । मतलब महाविद्यालयों के शिक्षकों को इनकम तो हुई नहीं लेकिन इनकम टैक्स कट गया ये भी अपने आप में अनोखा मामला था ।
इस पूरे मामले में हो रही लेटलतीफी के चलते कई कर्मचारी रिटायर्ड हो गए थे और कई दुनिया ही छोड़ गए । इसके खिलाफ 2023 में डा शैलजा ठाकुर ने अधिवक्ता आनंद कुमार कुजुर और अधिवक्ता जे के मेहता के द्वारा एक रिट उच्च न्यायालय मंे दायर की ।
इस गंभीर मामले में माननीय उच्च न्यायालय ने भी संज्ञान लिया और उच्च शिक्षा विभाग को जल्द ही पूरे मामले को निपटाते हुए 12 जुलाई तक इस पूरे प्रकरण में क्या किया गया इसका हलफनामा देने का आदेश दिया । इसके बाद ही उच्च शिक्षा विभाग ने के -डिपाजिट में जमा राशि को विमुक्त करने की सहमती प्रदान की है जो कि वित विभाग से अनुमति मिलने के बाद की है लेकिन कब तक ये भुगतान होगा इसकी जानकारी नहीं है ।
अंदरूनी सूत्रों से एक और मजेदार बात पता चली उच्च शिक्षा आयुक्त ने उच्च शिक्षा सचिव को एक पत्र लिखा जिसमें 152.5287 करोड़ विमुक्त करने की बात कही है । परंतु इसी कार्यालय के एक अतिरिक्त संचालक उच्च शिक्षा विभाग ने एक हलफनामा जमा किया जिसमें लगभग 112.34 करोड़ की बात कही मतलब उच्च शिक्षा विभाग के अधिकारियों में ही इस राशि को लेकर असमंजस है ।
इस पूरे मामले में गजब की ड्राफटिंग की उच्च शिक्षा आयोग ने इसमें बताया कि उन्होंने इस सबंध में एक अधिकारी को दिल्ली भ्रमण के लिए भेजा था लेकिन केन्द्र सरकार ने कहा कि 01.04.2022 को ये योजना बंद कर दी है इसलिए केन्द्रांश नहीं दिया जा सकता है ।
इससे अब ये समझ आता है कि प्रदेश के महाविद्यालयों के प्राध्यापकों को जितनी राशी केन्द्र और राज्य सरकार से मिलाकर मिलनी थी अब वो नहीं मिलेगी और उन्हें सिर्फ राज्य सरकार के द्वारा दी जाने वाली राशि ही मिलने वाली है ।
बहरहाल इस पूरे मामले में प्रदेश के उच्च शिक्षा विभाग के अधिकारियों की लापरवाही स्पष्ट रूप से दिखती है । इस मामले से एक बड़ा सवाल ये भी उठता है कि जब प्रदेश का उच्च शिक्षा विभाग इतना लापरवाह और सुस्त है तो फिर प्रदेश के बेहतर शिक्षा व्यवस्था के लिए विभाग कैसे कदम उठा रहा होगा ?