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अजीत जोगी एक जन नेता – पार्ट 02

जब भाजपा के विधायक ने अजीत जोगी के लिए खाली की अपनी सीट ।

दबंग न्यूज लाईव
गुरूवार 14.5.2020

 

Sanjeev Shukla

अजीत जोगी एक जन नेता के पहले पार्ट में आपने पढ़ा था कि कैसे इंदौर की कलेक्टरी करते हुए अजीत जोगी राजनीति में आए और फिर एक धूमकेतु की तरह चमके और छत्तीसगढ़ के पहले सीएम बने । आगे की कहानी पार्ट 02 आपके सामने हैं ।

 

 

छत्तीसगढ़
 2003 तक अजीत जोगी छत्तीसगढ़ के सीएम रहे । इस दौरान उन्होंने बहुत से कार्य किए । इसी समय मरवाही का नाम प्रदेश के पटल पर दो कारणों से उभरा दोनों कारणों में से एक थे अजीत जोगी और दूसरे रामदयाल उईके। कहा ये भी जाता है कि जब अजीत जोगी सीएम थे उनके मरवाही का एक एक आदमी सीएम से कम नहीं था क्योंकि हर आदमी की सीधी बात अपने सीएम से होती थी । और मजाल है कोई अधिकारी मरवाही के किसी आम जनता से उंची आवाज में बात कर ले ।


लेकिन इस समय एक और घटनाक्रम छत्तीसगढ़ की राजनीति में हुआ वो ये था कि जिस समय अजीत जोगी सीएम बने वो विधायक भी नहीं थे ऐसे में उनके लिए ऐसी कोई सीट खाली करवानी थी जहां से वो विधानसभा का चुनाव लड सकें । ऐसे में सामने आए रामदयाल उईके जो उस समय मरवाही विधानसभा सीट से विधायक थे ओैर विधायक भी भाजपा के । क्या कभी ऐसा हुआ है कि एक पार्टी के विधायक ने दुसरी पार्टी के नेता के लिए अपनी सीट छोड़ दी । लेकिन यही तो अजीत जोगी का जादू है । भाजपा के रामदयाल उईके ने अजीत जोगी के लिए मरवाही विधानसभा सीट छोड़ी ओैर उसके बाद से मरवाही जोगी परिवार का गढ़ हो गया ।


ये समय ऐसा था जब विद्याचरण शुक्ल का कांग्रेस से मोह भंग होने लगा था और उन्होंने कांग्रेस से अलग होते हुए राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी याने एनसीपी का गठन कर लिया । विद्याचरण शुक्ल छत्तीसगढ़ के काफी प्रभावशाली नेता थे । उनके अलग होने से नुकसान कांग्रेस को ही होना था और हुआ भी । 2003 में ही प्रदेश में पहली राजनैतिक हत्या हुई । ये हत्या हुई एनसीपी के कोषाध्यक्ष रामावतार जग्गी की । उनके बेटे सतीश जग्गी ने इसमें नाम लिया अजीत जोगी और उनके बेटे अमित जोगी का । बाद में जोगी परिवार को इस मामले में क्लिन चिट मिल गई ।


2003 के बाद हुए विधानसभा के चुनाव में भाजपा ने पचास सीट पर कब्जा कर लिया । कांग्रेस को मिली 37 सीट । बहुजन समाज पार्टी ने 2 सीटों पर कब्जा किया तो कांग्रेस को सत्ता से बाहर करने वाली एनसीपी ने एक सीट पर कब्जा किया और उसके विधायक जो विधानसभा पहुंचे वो थे चंद्रपुर सामान्य सीट से नोबेल वर्मा ।


यदि इस दौरान वोट प्रतिशत पर नजर डालें तो भाजपा को जहां 37.6 प्रतिशत व्होट मिले तो कांग्रेस को 36.74 , बसपा को दो सीट पाने के बावजूद 4.71 और एक सीट पर कब्जा करने वाली एनसीपी ने 7.02 प्रतिशत व्होट काट दिए । याने यदि एनसीपी कांग्रेस से अलग नहीं होती तो राजनीतिक पंडितो का कहना था कि कांग्रेस का वोट प्रतिशत 43.76 प्रतिशत होता और ऐसे में कई सीट जो करीबी अंतर से कांग्रेस ने गंवाई थी वो कांग्रेस के पास रहती और प्रदेश में दुसरी बार कांग्रेस की सरकार बनती । लेकिन जो होना था वो हो गया था ।


अजीत जोगी पुनः दुसरी बार सरकार बनाने से वंचित रह गए । इसी बीच विधानसभा में विधायकों की खरीदी बिक्री का मामला सामने आया । भाजपा के कुछ नेताओं ने विधानसभा में बैग और नोटों की गडडीयां दिखाते हुए अजीत जोगी पर आरोप लगाया कि वे भाजपा के विधायक खरीदने का प्रयास कर रहे हैं । इस बात की शिकायत पार्टी आलाकमान से इस अनुसंशा के साथ हुई कि इन्हें छह साल के लिए निष्काषित कर दिया जाए लेकिन पार्टी आलाकमान ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया । बाद में सन 2018 में अजीत जोगी को इस मामले में भी क्लिन चिट मिल गई ।


इस चुनाव में एक बात जो सामने आई वो ये थी कि विद्याचरण शुक्ल की एनसीपी ने कांग्रेस के अच्छे खासे वोट काट दिए और इसका सीधा फायदा भाजपा को मिल गया । इसके बाद पंद्रह साल तक प्रदेश में भाजपा का शासन रहा । इस दौरान ये भी कहा जाता रहा कि जब तक अजीत जोगी हैं और वे चाहेंगे प्रदेश में भाजपा की ही सरकार बनेगी ।


2003 के बाद आया सन् 2004 । 2004 छत्तीसगढ़ की राजनीति में काफी उथल पुथल रहा । अजीत जोगी के लिए ये साल शायद ही भुलाने वाला हो । 2004 के लोकसभा चुनाव होने थे । ये लोकसभा चुनाव छत्तीसगढ़ का पहला लोकसभा चुनाव था । मध्यप्रदेश से अलग होने के बाद छत्तीसगढ़ के हिस्से में ग्यारह लोकसभा की सीटें आई । भाजपा इस बात को लेकर संतुष्ट थी कि छत्तीसगढ़ बनाने का फायदा उसे मिलेगा । हुआ भी यही । ग्यारह में से दस सीट भाजपा की झोली में गई ।

2004 में ऐसा क्या हुआ जो अजीत जोगी शायद ही कभी भूल पाएं । पढ़िएगा अजीत जोगी एक जननेता के तीसरे पार्ट में ।

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