
जानकारी के बाद अधिकारियों के बहाने शुरू ।
दबंग न्यूज लाईव
रविवार 13.11.2022
करगीरोड कोटा – प्रदेश सरकार रियायती दरों पर प्रदेश के लोगों को सोसायटी के माध्यम से चने का वितरण करती है लेकिन इसका ये मतलब बिल्कुल नहीं होना चाहिए कि रियायती दर में उपलब्ध है इसलिए अनाज सड़ा गला भी हो तो भी जायज है ।

कोटा विकासखंड के अमाली पंचायत में आज सोसायटी से लोगों को जो चना वितरित किया जा रहा है वो कहीं से भी खाने योग्य नहीं है । चने के पैकेट में शायद ही कोई एकाध चना हो जिसमें घुन ना लगा हो । चने के पैकेट के हर दाने में घुन लगा है और पैकेट में जिस तरह से मिट्टी भरी हुई है उससे यही लग रहा कि यदि चना निकाल के तौल लिया जाए तो चना और मिट्टी के वजन में ज्यादा अंतर नहीं होगा । गांव के लोगों का कहना था कि इस चने को तो जानवर भी नहीं खा सकेगा जो सरकार हमारे लिए भेज रही है ।

सरकार की मंशा अपने नागरिकों को स्तरहीन अनाज देने की तो नहीं ही होती होगी लेकिन उसके अधिकारी अनाजों को बेहतर ढंग से रखने में जरूर विफल हो जाते हैं और इसका नतीजा यही होता है । जानकारी के बाद खाद्य विभाग के अधिकारी अपने बने बनाए बहाने पर लौट आए कि जानकारी नहीं है , देखते हैं , दिखवाते हैं , पता करते हैं । एएफओ सवन्नी ने फुड इंस्पेक्टर को भेजने की बात की तो फुड इंस्पेक्टर ने किसी और को ।

अधिकारी ना तो अपने मुख्यालय में रहते हैं और ना ही सोसायटी का नीरिक्षण ही करते हैं कि सोसायटी में अनाज पहुंचा कि नहीं ? लोगों को अनाज मिल रहा है कि नहीं ? और जो अनाज मिल रहा है उसकी गुणवत्ता कैसी है ? लेकिन इतना तय है अधिकारियों का ये रवैया राज्य सरकार की छवी खराब करने के लिए काफी है । हो सकता है खबर के बाद भाजपा के लोग प्रदेश सरकार के खिलाफ हल्ला बोलने लगें क्योंकि चना देने की स्कीम तो उन्हीं की सरकार लेकर आई थी ।

खादय विभाग के एएफओ सवन्नी का कहना था – इस बात की जानकारी आपसे ही प्राप्त हुई है कल ही फुड इंस्पेेक्टर को वहां भेज कर जांच करवाई जाएगी ।
वहीं फुड इंस्पेक्टर का कहना था – इस बात की जानकारी मुझे नहीं है यदि ऐसा है तो मैं पता करता हूं । वैसे नान से अनाज चेक होकर ही सोसायटी में जाता है और उसे एक माह के अंदर ही बांट देना होता है ।
इसका मतलब तो यही हुआ कि नान से अनाज भेजने के पहले उसकी क्वालिटी जांच नहीं हुई ? और यदि हुई तो फिर खराब चना क्यों सोसायटी भेजा गया ? अधिकारियों के इस लापरवाही का नतीजा अनाज वितरण करने वाले को भुगतना पड़ता है क्योंकि गांव के लोगों को जवाब अधिकारी को नहीं उसी को देना होता है ।



