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वन विभाग के रेंजर बनाम इंजिनियर पुल बनाएंगे तो यही हाल होगा । बह गए चार पुल गांव से टुटा संपर्क ।

तीन साल में बह गए चार पुल । रेंजर नेताम ने कहा क्या कर सकते हैं बह गए तो ।

दबंग न्यूज लाईव
शनिवार 29.08.2020

 

बेलगहना वन विभाग के रेंजर बनाम इंजिनियरों द्वारा बनाए गए विभागीय चार पुल तीन साल में ही बह गए । मजे की बात ये है कि इसके बाद जिम्मेदार रेंजर नेताम ने कहा कि क्या कर सकते हैं बह गए तो । सहीं भी है रेंजर साहब कर ही क्या सकते हैं इनका काम सीमेंट ,छड़ कांक्रीट का तो है नहीं ये तो पढ़ाई लकड़ी पेड़ और जंगलों की कर के आए हैं विभाग ने इन्हें सिविल इंजिनियर बना दिया । लेकिन मजाल है वन विभाग के रेंजर कभी अपनी गलती माने सब गलती भगवान की है ना तेज पानी गिरता ना पुल बहता अब नेताम साहब या अन्य रेंजर बनाम इंजिनियर करेे क्या ।

पूरा मामला कोटा विकास खण्ड के अन्तर्गत परसापानी ग्राम पंचायत के दो आश्रित ग्रामों झेराखोला और खम्हारमाड़ा का सड़क सम्पर्क बाहरी दुनिया से पूरी तरह खतम हो चुका है कारण यह है कि इन गांवों को जोड़ने वाली छतौना-पूडु सड़क पर वन विभाग द्वारा बनाये गये चार पुल महज 4-5 सालों में ही बह कर नष्ट हो गये हैं । स्थानीय व्यक्तियों द्वारा दी गयी जानकारी के अनुसार इनमें से 3 पुल तो निर्माण के दो वर्ष के भीतर ही बह गये थे चोैथा पुल जिसके सहारे उक्त दोनों गांवों तक पहुंचा जा सकता था वह भी इस बारिश में टूटकर बह गया ।


इस पुलिया के बह जाने के बाद जब इन नालों पर पानी उफान में आ गया । बीते सप्ताह भर से लगातार बारिश के कारण इन गावों का सम्पर्क बाहर से पूरी तरह टूट गया है। अब अगर इन परिस्थितियों में कोई मेडिकल इमरजेन्सी हो जाए या अन्य किसी प्रकार की आपातकालीन परिस्थिति बन जाय तो इन गांव वालों के पास कोई रास्ता नही बचता कि उनकी किसी प्रकार से मदद हो पाये।


जिला या तहसील मुख्यालय से सुदूर इन गांवों में स्वास्थ्य, शिक्षा, संचार आदि मूलभूत सुविधाओं का सर्वथा आभाव रहा है । सड़क के खराब होने और पुलियों के टूट जाने पर 108 और 112 जैसी आपातकालीन सुविधाओं से भी ये गांव वाले वंचित रह जाते हैं । ये हैं यहां के वास्तविक हालात परन्तु शासन ने तो यहां के लिए सड़क और पुलों के निर्माण के लिए पैसे खर्च कर दिये हैं ये बात और है कि इन रूपयों से जो काम कराया गया वह अब अस्तित्व में नही रहा ।


इसके कारणों कि जब आप पड़ताल करेंगें तो आप पायेंगें की इसकी मुख्य वजह है सिस्टम की भर्राशाही और भ्रष्टाचार। भर्राशाही इसलिए कि जिनको ट्रेनिंग दी गई पेड़ पौधे लगाने काटने और बचाने की जंगली जानवरों के साथ निभने की वो अपना काम छोड़कर लाखों रूपये के सिविल वर्क करा रहे हैं जिनको बांस और लकड़ी का ज्ञान दिया गया है या जिनकी योग्यता का क्षेत्र जंगल और इससे जुडी चीजें है वो आर्कीटेक्ट का काम कर रहे हैं आरसीसी और लेआउट ड्राइंग डिजाइनिंग का काम देख रहे हैं नतीजा आपके सामने है ।


जिन चार पुलियों का जिक्र हमने यहां किया है इन सभी की लागत लगभग 4 से 5 लाख रूपये थी यानि की जनता के लगभग 20 लाख रू बह गये और गांव वाले मुसीबत में फंसे हैं वो अलग। वन विभाग के अधिकारी पानी के तेज बहाव को इसका कारण बता रहे। 
सरपंच प्रतिनिधि परसापानी-सड़क के चारो पुल बह जाने के कारण दोनो ही गांव के लोग कहीं आ जा नही सकते कोई बीमार पड़ जाता है तो बड़ी मुसीबत हो जाती है मोटर साइकिल तक नही जा पाती । कोई जरूरी काम हो किसी को बाहर पढ़ाई या काम करने जाना हो सब लोग फंस कर रह गये हैं।
नेताम वन परिक्षेत्र अधिकारी रतनपुर-जंगली एरिया है पानी ज्यादा गिरने से बह गया क्या कर सकतें है ।

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